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तिकोवपत्तिका गणित
गिश्रेणी- ११५००००.]..... अथवा ,खगोणी - २३ होती है। पुष्करवर समुद्र के प्रथम वलय में २८८ चंद्र व सूर्य है। किसी द्वीप अथवा समुद्र के प्रथम वलय में
. उस द्वीप या समुद्र का विष्कम्भ X९ होती है। प्रत्येक द्वीप समुद्र का स्थित चंद्र व सूर्य की संख्या - विस्तार उत्तरोत्तर द्विगुणित होता गया है और प्रारम्भ पुष्करवर द्वीप से होता है जहां विष्कम्म १६००००० योबन है। इस प्रकार सूत्र बनाया गया है। प्र. ७६४ आदि-सपरिवार चन्द्रों के लाने का विधान :
अभी तक, जैसा मुझे प्रतीत हुआ है उसके अनुसार, वीरसेनाचार्य के कथन की पुष्टि का प्रतिपादन निम्न लिखित होगा।
पृष्ठ ६५८ पर गाथा ११ में ग्रंथकार ने सम्पूर्ण ज्योतिष देवों की राशि का प्रमाण: अगश्रेणी बतलाया है। (२५६ प्रमाणांगुल)
जगप्रतर पृष्ठ ७६७ - ज्योतिष बिम्बों का प्रमाण ६५५२५५३६र अथवा / अगश्रेणी .. १ (२५६ प्रमाणात) बतलाया है। तथा, इसमें प्रत्येक विम्ब में रहनेवाले तत्मायोग्य संख्यात जीव ( १६५५३६१ ) का गुणा करने पर सम्पूर्ण ज्योतिषी देवों, अथवा ज्योतिषी जीव राशि का प्रमाण प्राप्त होता है । स्मरण रहे कि जगश्रेणी का अर्थ, जगभेणी में स्थित प्रदेशों की गणात्मक संख्या है, तथा प्रमाणांगुल का अर्थ प्रमाणांगुलकुलक में प्रदेशों की गणात्मक संख्या है। इस न्यास के आधार पर वीरसेन ने सिद्ध किया है कि यद्यपि परिकर्मसूत्र में रज्ज के अर्द्धच्छेदों की संख्या, 'द्वीप-समुद्र की संख्या में रूपाधिक जम्बूद्वीप के अर्द्धच्छेदों के प्रमाण को मिला देने पर प्राप्त होती है, तथापि उस कथन का अर्थ उपयुक्त लेना चाहिये । यहां रूपाधिक का अर्थ अनेक से है, जहां अनेक, संख्यात, असंख्यात दोनों हो सकता है, एक नहीं | यह सिद्ध करने में, उनकी अद्वितीय प्रतिभा का चमत्कार प्रकट हो जाता है। आगमप्रणीत वचनों में उनकी प्रगाढ़ श्रद्धा थी, पर, उन वचनों की वास्तविक भावना को युक्तिबल से सिद्ध करने की प्रेरणा भी थी। इस प्रकार, परिकर्म के वचनों का यथार्थ अर्थ प्रकट करने के लिये, उन्होंने पूर्वाचार्यों के के कथनों को आगमानुसार, गणित की कसौटी पर पुनः कसा। स्पष्ट है, कि तिलोयपण्णत्ती के इस अवतरण में वीरसेन की शैली का प्रवेश हुआ है, पर यह सुनिश्चित प्रतीत होता है कि यतिवृषभ ने परिकर्मसूत्र से इस आगमपणीत ज्योतिष बिम्ब संख्या के प्रमाण का विरोध वीरसेन से पहिले निर्दिष्ट कर दिया था, और उनके पश्चात् वीरसेन ने उसका निरूपण कर परिकर्मसूत्र का उपयुक्त अर्थ स्पष्ट किया। हम इसका निरूपण कुछ आधुनिक शेली पर करने का प्रयत्न करेंगे।
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स्पष्ट है कि बम्बूद्वीप के विष्कम्म १००००० योजन को इकाई लेकर यदि अन्य द्वीप-समुद्रों के विष्कम्भों को प्ररूपित करें तो वे क्रमशः लवणोदय के लिये २इकाईयां, धातकी द्वीप के लिये ४इकाईयां. कालोदपि समुद्र के लिये ८काईयां, पुष्करवरद्वाप के लिये १६ इकाईयां, इत्यादि होगे।
वह बतलाया जा चुका है कि एक चद्र के परिवार में एक सूर्य, ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र तथा
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