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तिकोपपण्णसिका गणित
तापक्षेत्र - = M (P) योजन | यहां M का मान, n वीं बोथी के प्रमाण से निकाला जा
६०
सकता है।
इस प्रकार, तापक्षेत्र न केवल दिन की घटती बढ़ती पर, वरन् परिधि पर भी निर्भर रहता है । इसका स्पष्टीकरण यह है— कोई भी परिधि का पूर्ण चक्र अथवा सूर्य द्वारा मेरु की पूर्ण प्रदक्षिणा १८+१८+१२+१२ मुहूर्ती अथवा ६० मुहूर्ती में संपूर्ण होती है। क्यों ज्यों सूर्य बाह्य मार्ग की ओर जाता है त्यो त्यों दिन का प्रमाण प्रतिदिन घटता है और तापक्षेत्र में हानि
मुहूर्त
P २
P X वर्ग योजन होती है। यह प्रमाण
योजन होगा ।
६०
६१
१०x१८३
यहां सूर्य के कुल अंतरालों की संख्या १८३ है । स्पष्ट है, कि सूर्य के दूर जाने पर तापक्षेत्र में हानि होने से तमक्षेत्र में वृद्धि होगी । गा. ७, ४२१ आदि -- ४२२वीं गाथा में उल्लेखित सूत्रों का त्रिवरण पहिले दिया जा चुका है । यहां विशेष उल्लेखनीय बात चक्षुस्पर्श क्षेत्र है। सूर्य P. वीं परिधि पर स्थित रहता है तब चक्षुस्पर्शक्षेत्रPयोजन होता है। यहां ९ मुहूर्ती में सूर्य निषध पर्वत से अयोध्या तक की परिधि को समाप्त करता है तथा सम्पूर्ण परिधि के परिभ्रमण (revolution ) को ६० मुहूर्त में सम्पूर्ण करता है। उत्कृष्ट चक्षुस्पर्शध्यान के लिये P का मान ३१५०८९ योजन है।
गा. ७, ४३५ आदि- भिन्न २ परिधियों पर स्थित भिन्न २ गये समय के आधार पर उन नगरियों के स्थानों को इन गाथाओं में निश्चित कर सकते हैं और उनकी बीच की दूरी योजनों में निकाल सकते हैं, के बीच अंतराल है उतने काल में सूर्य द्वारा बितनी परिधि तय होगी उतना उन नगरों के बीच परिधि पर अंतराल होगा । अन्य परिधियों पर स्थित नगरियों के बीच की दूरी भी निश्चित की जा सकती है।
नगरियों में एक ही समय दिये दिये गये न्यासों के आधार पर क्योंकि जितना उनके समय
९५
गा. ७, ४४६ - चक्रवर्ती अधिक से अधिक ५५७४८ योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को देख सकता है।
particular instant expanding with time. It dates back to about 2x10 years, though, the stars of our galaxy are thought to be born 1019 years ago.
If the curvature is taken negative the formula shows an open hyperbolic space of radius_ 3.5 x 108 parsecs an infinite srationary universe of mean density 10-80gm / om. Limiting care of zero curvature is "lat" Fuolidean space with an infinite radius.
Other theories propounded in favour of expanding universe are the 1) kinematic theory based on Euclidean space and mathmatical structure of special relativity and 2) the creation of matter theory. The former is unscientific because of its indefinite definition of distance and avoidance of observational date. The latter is not sound as it assumes creation of matter out of nothing in the form of hydrogen atoms and there is no evidence of its, steady state of universe, assumption.
Thus we seem to face, as once before in the days of Copernicus a choice between a small finite universe and a universe infinitely large plus a new principle
of nature."
देखें, यह समस्या, वितन्तु ज्योतिर्लोकविज्ञान ( Radio Astronomy) और माउंट पालोमर की २०० दूरबीन तथा अन्य नवीन आविष्कार कहां तक सुलझा सकते है ।
इसके साथ ही संसार के द्वीपों की कल्पना की एक झलक को हम स्मार्ट के शब्दों में प्रस्तुत करेंगे, "According to our present viewe, the universe is a vast assemblage of separate
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