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________________ इसी प्रकार, चार इंद्रिय जीवों का प्रमाण = २८८१ = २१.८ (5) + ८१ ८१ " (९)" = २ १५८६४ बतलाया गया है। अथवा ४ ६५६१ इसी तरह पांचहन्द्रिय जीवों का प्रमाण तिकोपपत्तिका गणित अथवा = २ १ १ = २ १ ८ ( ९ )" + ((0) ८१ ૪ = २ १५८३६ ६५११ बतलाया गया है । पर्याप्त नीबों की संख्या निकालने के लिये उपर्युक्त रीति में 2 के बदले केवल संख्यात ५ लेते है, जिससे उल्लेखित प्रमाण प्राप्त हो जाता है । दोइद्रिय अपर्याप्त बीबों की राशि को ग्रंथकार ने वास्तव में निम्न प्रकार निरूपित किया है : २ १ ८४२४ २५६१ Font == (4). +/ 유용 पंचेन्द्रिय तिर्येच संज्ञी अपर्याप्त राशि बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवराशि अंतिम दो स्थापनाओं में कुछ ऐसे प्रतीक है जिनका अर्थ इस समय प्राप्त सामग्री से ग्राह्य नहीं है। ये क्रमशः मू. " ,, t " तो ग्रीक अक्षर सिगमा तथा ग्रीक अक्षर ओमेगा तथा ९ रो के समान और & एल्फा के समान प्रतीत होता है । यद्यपि ९, ९ अंक से लिया गया प्रतीत होता है और & असंख्यात का प्ररूपण करता है, तथापि और 12 के विषय में खोज आवश्यक है, क्योंकि ये वर्णाक्षर विभिन्न युगों में यूनान में पूर्वीय देशों से प्रविष्ट हुए । गा. ५, ३१४-१५- अप बहुत ( Comparability ) : यहां ४ प्रतरांगुल है ८ घनावलि है, तथा & असंख्यात है । (-) 8 ६१२० ६५६१ निष्पत्ति का प्ररूपण Jain Education International . ( ) / (४६५५३६४५४५) है। = प ઢ यह प्रमाण ८×××६५५३६४५४५ ५५ होता है । इस राशि को ग्रंथकार ने असंख्यात विभाग में रखा है। यह स्पष्ट भी है, क्योंकि, जगप्रतर का प्रमाण असंख्यात और 8 का प्रमाण मी असंख्यात है । संशी पर्याप्त, अशी पर्याप्त से संख्यात अथवा ४ गुने हैं। ८ तीन इंद्रिय अशी अपर्याप्त राशि तीन इंद्रिय पर्याप्त राशि से असंख्यातगुणी है। यह प्रमाण आवलि के प्रमाण पर निर्भर है। इसी प्रकार दोइंद्रिय अपर्याप्त जीवराशि से असंख्यातगुणी अप्रतिष्ठित प्रत्येक जीवराधि है जो रस्य के प्रमाण पर निर्भर है। चलकायिक बादर पर्याप्त जीव हैं तथा बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव पर्याप्त जीव ँ हैं । Heath, A History of Greek Mathematics, vol. 1, pp 31-33 Edn. 1921. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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