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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
रानी नन्दी ने यह बात सुनी कि कुमार की वीरता पर मोहित होकर महाराज वसुपाल ने सात दिन तक अभयदान देना स्वीकार किया है । सुनते ही वह अपने मनोरथ को पूर्ण हुआ समझ, बहुत प्रसन्न हुई । और जैसी नवीन लता दिनोंदिन प्रफुल्लित होती जाती है वैसी वह भी दिनोंदिन प्रफुल्लित होने लगी। शुभ लग्न, शुभ वार, शुभ नक्षत्र, शुभ दिन एवं शुभोपयोग में किसी समय रानी नन्दश्री ने अतिशय आनंदित पूर्ण चन्द्रमा के समान मनोहर मुख का धारक, कमल के समान मनोहर नेत्रों से युक्त, उत्तम पुत्र को जन्म दिया । पुत्र की उत्पत्ति व आनंद के कारण रानी नन्दश्री का शरीर रोमांचित हो गया और वह सुखसागर में गोता लगाने लगी ॥ ४२-४४ ॥
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कामिनी कलगीतानि वं दिवृदश्रुतिस्वनाः । पंचशब्दमहानादा बभूवुस्तद्गृहांगणे ।। ४५ ॥ दीनानाथजनेभ्यश्च ददौ दानं स्वहर्षतः । स्वजनेभ्यश्च संतोषादिद्रदत्तस्य मागधः || ४६ ॥ स्वजनैश्च ततः सर्वैस्तस्य चक्रे अभयादिकुमाराख्या महता
सुदानतः ।
संभ्रमेण च ।। ४७ ।।
पयः
एधते कलया घस्र े घस्र े मंडितदीधितिः । रम्यो दोषाकरश्चंद्रो यथा कुमुदकारकः ।। ४८ ॥ पानादिभिर्बालो लाल्यमानो निजैर्जनैः । तन्वन् पित्रोर्मुदंस्फीतं ववृधे बुद्धिभूषितः ॥ ४६ ॥ कुमारत्वं समासाद्य पठत्शास्त्राण्यनेकशः । लीलया स महातेजाः स्वल्पकालेन बुद्धिमान् ॥ ५० ॥ तनुजेनेति संशर्मश्रिया नंदश्रिया समम् । बभुजेऽतनु स श्रीमान् गतं कालं न वेत्ति च ॥ ५१ ॥
सेठी इन्द्रदत्त के घर नन्दश्री से धेवता हुआ है यह समाचार सारे नगर में फैल गया । सेठी इन्द्रदत्त के घर कामिनी मनोहर गीत गाने लगी । बन्दीजन पुत्र की स्तुति करने लगे । पुत्र के आनंद में मनोहर शब्द करनेवाले अनेक बाजे भी बजने लगे । बालक के गर्भस्थ होने पर नन्दश्री को अभयदान का दोहला हुआ था । इसलिए उस दिन को लक्ष्य कर सेठी इन्द्रदत्त के कुटुम्बी मनुष्यों ने बालक का नाम अभयकुमार रख दिया। एवं जैसा रात्रि-विकासी कमलों को आनन्द देनेवाला चन्द्रमा दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है वैसा ही अतिशय दैदीप्यमान शरीर का धारक समस्त भूमण्डल को हर्षायमान करनेवाला वह कुमार भी दिनोंदिन बढ़ने लगा। कुटुम्बीजन दूध - पान आदि से बालक की सेवा करने लगे। आनन्द से खिलाने लगे । इसलिए उस बालक से उसके
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