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श्रेणिक पुराणम्
माता-पिता को और भी विशेष हर्ष होने लगा । कुछ दिन बाद अभयकुमार ने अपनी बालक अवस्था छोड़ कुमार अवस्था में पदार्पण किया । और उस समय तेजस्वी कुमार अभय ने थोड़े ही काल में अपने बुद्धिबल से बात- ही बात में समस्त शास्त्रों का अध्ययन कर लिया। वह असाधारण विद्वान हो गया । इस प्रकार कुमार श्रेणिक के साथ रानी नन्दश्री नाना प्रकार के भोग-विलास करने लगी । एवं कुमार भी कान्ता नन्दश्री के साथ भाँति-भाँति के भोग भोगने लगे तथा भोगविलासों में मस्त, वे दोनों दंपती जाते हुए काल की भी परवा नहीं करने लगे ।।४५-५१।।
राजगृहे रम्ये पत्तने उपश्रेणिकभूपालो मत्वास्यायुः चलाती सूनवे परया संपदा साकं
राज्यं
ददौ
अथ
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धृतसत्तमे ।
क्षयं कुतः ॥ ५२ ॥ सामंतसेवितः ।
चक्रवत्तिसमश्रिया ॥ ५३ ॥
इधर कुमार श्रेणिक तो सेठी इन्द्रदत्त के घर नन्दश्री के साथ नाना प्रकार के भोग भोगते हुए सुखपूर्वक रहने लगे। उधर महाराज उपश्रेणिक अतिशय मनोहर, अनेक प्रकार की उत्तमोत्तम शोभा से शोभित राजगृह नगर में आनन्दपूर्वक अपना राज्य कर रहे थे। अचानक ही जब उनको यह पता लगा कि अब मेरी आयु में बहुत ही कम दिन बाकी हैं— मेरा मरण अब जल्दी होनेवाला है। शीघ्र ही उन्होंने चक्रवर्ती के समान उत्कृष्ट, बड़े-बड़े सामंतों से सेवित, विशाल राज्य को चलाती पुत्र को दे दिया । तथा राज्य कार्य से सर्वथा ममता रहित होकर पारमार्थिक कर्मों में वे चित्त लगाने लगे ।। ५२-५३ ।।
ततः
कतिपयैर्घत्र :
तदा लोकाः शुचं तीव्रं इंद्राणी प्रमुखा राज्ञ्यो अकुर्वन् विविलापं च
पंचत्वमगमन्नृपः । चक्रिरे रावपूरिताः ॥ ५४ ॥ वक्त्रफूत्कारपूरिताः । दीर्घकंठोत्थरोदनाः ।। ५५ ।।
कुछ दिनों के बाद आयु-कर्म के समाप्त होने पर महाराज उपश्रेणिक का शरीरांत हो गया। उनके मर जाने से सारे नगर में हा-हाकार मच गया। पुरवासी लोग शोक-सागर में गोता लगाने लगे । रनिवास की रानियाँ भी महाराज का मरण- समाचार सुन करुणाजनक रुदन करने लगीं। जितने भी सौभाग्य चिह्न हार आदिक थे सब उन्होंने तोड़कर फेंक दिये। और महाराज के मरण से सारा जगत उन्हें अन्धकारमय सूझने लगा ।। ५४-५५।।
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अथ राज्यं शुभप्राज्यं पालयामास तत्सुतः । सामंतामात्य पौरैश्च सेव्यमानोऽति दुष्टधीः ॥ ५६ ॥
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