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________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् वाले मनोहर चिह्न भी प्रगटित होने लगे। कदाचित् नन्दश्री को सात दिन पर्यंत अभयदान का सूचक उत्तम दोहला हुआ। अपनी घर की स्थिति देख उस दोहला की पूर्ति अति कठिन जानकर वह भारी चिंता करने लगी। और जैसे पानी के अभाव से उत्तम लता कुम्हला जाती है उसी प्रकार उसके अंग भी चिंता से सर्वथा कुम्हलाने लगे॥६-१५।। तादृशां तां विलोक्याशु श्रेणिको व्याकुलोऽभवत् । कुत: शर्मसमत्पन्नमस्या अंगेस्फुरत्प्रभे ।। १६ ।। अपृच्छत्स ततो रम्यां तां खिन्नादिसुकारणम् । कांते ! केनेदृशाजाता विच्छाया क्षीणविग्रहा ॥ १७ ॥ किसी समय कुमार श्रेणिक की दृष्टि नन्दश्री पर पड़ी, उदास एवं कान्ति रहित रानी नन्दश्री को देख उन्हें अति दुःख हुआ। वे अपने मन में विचार करने लगे अतिशय मनोहर एवं दैदीप्यमान सुन्दरी नन्दश्री के शरीर में अति वाधा देनेवाला यह दुःख कहाँ से टूट पड़ा। इसकी यह दशा क्यों और कैसे हो गई ? ऐसा विचारकर उन्होंने पास जाकर नन्दश्री से पूछा-हे प्रिये ! जिस कारण से आपका शरीर सर्वथा खिन्न, कृश और फीका पड़ गया है वह कौन-सा कारण है मुझे कहो ? ॥१६-१७॥ दुर्घटं दोहदं मत्त्वा सान वक्ति यदा तदा । वाचिता कथमप्येषःऽगदीद्वाक्यं मनोगतं ।। १८ ।। कथं करोमि भो कांत ! कृपां सप्तदिनावधिम् । दोहलकोद्भवां लज्जामंतः खिन्नास्मि भूपते ॥ १६॥ कुमार के ऐसे हितकारी एवं मधुर वचन सुनकर और दोहले की पूर्ति सर्वथा कठिन समझ कर पहले तो नन्दश्री ने कुछ भी उत्तर न दिया। किन्तु जब उसने कुमार का आग्रह विशेष देखा तो वह कहने लगी-हे कांत ! मैं क्या करूँ मुझे सात दिन पर्यंत अभय नामक दान का सूचक दोहला हुआ है। इस कार्य की पूर्ति अति कठिन जान मैं खिन्न हूँ। मेरी खिन्नता का दूसरा कोई भी कारण नहीं। प्रियतमा नन्दश्री के ऐसे वचन सुन कुमार ने गम्भीरतापूर्वक कहा ॥१८-१९॥ आकर्ण्य वचनं तस्या जगौ गंभीरवाचया । खेदं मा कुरु भोकांतेऽभव मा क्षीणविग्रहा ॥ २० ॥ पूरयिष्यामि चित्तस्थं मा कृथास्तं तवाऽधुना । दुःखं यथा कथंचिद्वै वृथा विज्ञानकोविदे ॥ २१॥ प्रिये ! इस बात के लिए तुम जरा भी खेद न करो। मत व्यर्थ खेद कर अपने शरीर को सुखाओ। सुव्रते ! मैं शीघ्र ही तुम्हारी इस अभिलाषा को पूर्ण करूँगा। चतुरे ! जो तुम इस कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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