SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक पुराणम् ७६ स्पर्श से अनन्य प्राप्त सुख का आस्वादन करने लगी। कभी तो वे दोनों दंपती चुम्बनजन्य सुख का अनुभव करने लगे। और कभी स्वाभाविक रस का आस्वादन करने लगे। तथा कभी-कभी दोनों ने परस्पर रूप-दर्शन एवं रति से उत्पन्न आनन्द का अनुभव किया। और कभी हास्योत्पन्न रस पिया। कभी-कभी स्तन-स्पर्श से उत्पन्न एवं कथा-कौतूहल से जनित सुख का भी उन्होंने भोग किया। इस प्रकार मानसिक, कायिक, वाचनिक अभीष्ट सुखको अनुभव करनेवाले, भांतिभांति की क्रीड़ाओं में मग्न, सुख-सागर में गोते मारनेवाले, कुमार श्रेणिक और नन्दश्री को जाते हुए काल का पता भी न लगा ॥१-८॥ तस्या वृषविपाकेन भ्र णोऽभूत्सुंदराकृतेः । ततो वृद्धि समापन्न उदरस्थः शुभान्वितः ॥ ६ ॥ तत्प्रभावात्तदंगेऽभूत्पांडुत्वं सर्गसुंदरे । चूचकाग्रे च कृष्णत्वं पयोधरमुखस्थिते ॥ १०॥ भूषणानि न रोचंते तस्यै गर्भप्रभावतः । विनक्षत्रा निशांते द्यौः शुशुभे च विभूषणा ॥११॥ गतेमंदत्वमुद्भूतं तुच्छान्नरुचिसंगता। निनिमित्ताज्जुगुप्सा च तस्याअंगे बभूव च ॥ १२ ॥ इत्यभूवन् सुचिह्नानि गर्भजानि तदंगके । दंतिनो गतिमापन्ने वक्त्रचंद्रविराजते ॥ १३ ॥ पुनर्दोहलको जातस्तस्याश्चेतसि सद्गतेः । सप्ताऽहो रात्रपर्यंताऽभयरूपावसूचकः ॥ १४ ॥ तमप्राप्ता स्वचित्तेऽभूद्वयाकुला क्षीणविग्रहा । विभूषा च सुवल्ली वा प्राप्तनीरा विपत्रिका ॥ १५॥ बाद कुछ दिन के उत्तम गुणयुक्त कुमार के साथ क्रीड़ा करते-करते रानी नन्दश्री के धर्म के प्रभाव से गर्भ रह गया। तथा सुन्दर आकार काधारक शुभ लक्षणोंकरयुक्त वह उदर में स्थित जीव दिनोंदिन बढ़ने लगा। गर्भ के प्रभाव से रानी नन्दश्री के अतिशय मनोहर अंग पर कुछ सफेदी छा गई। स्तनों के अग्रभाग (चूचुक) काले पड़ गये। उसे किसी प्रकार के भूषण भी नहीं रुचने लगे। तथा भूषण रहित वह ऐसी शोभित होने लगी जैसा नक्षत्रों के अस्त हो जाने पर प्रभात शोभित होता है। एवं गर्भ के भार से नन्दश्री की गति भी अधिक मंद हो गई। भोजन भी बहुत कम रुचने लगा। और उसको अपने अंग में ग्लानि भी होने लगी। एवं मतवाले हाथी के समान गमन करनेवाली, मुखरूपी चन्द्रमा से शोभित, मनोहारांगी नन्दनी के अंग में गर्भ से होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy