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________________ श्रेणिक पुराणम् ७७ तारीफ करने लगे। दंपती का रूप देख समस्त लोग इस भाँति कहने लगे कि आश्चर्यकारी इनकी गति है तथा आश्चर्यकारी इनका रूप और मधुर वचन हैं ये सब बात पूर्व पुण्य से प्राप्त हुई हैं। नन्दश्री को देखकर अनेक मनुष्य यह कहने लगे कि चन्द्र के समान कांति को धारण करनेवाला तो यह नन्दश्री का मुख है। फूले कमल के समान इसके दोनों नेत्र हैं। और अत्यंत विस्तीर्ण इसका ललाट है। कुमार श्रेणिक का संसार में अद्भुत पुण्य मालूम पड़ता है जिससे कि इस कुमार को ऐसे स्त्री-रत्न की प्राप्ति हुई है। तथा कुमार को देखकर लोग यह कहने लगे कि इस नन्दश्री ने पूर्वजन्म में क्या कोई उत्तम तप किया था ? अथवा किसी उत्तम व्रत को धारण किया था ? वा इष्ट पदार्थों के देनेवाले पात्रों में पवित्र दान किया था? जिससे इसको ऐसे उत्तम रूपवान, गुणवान पति की प्राप्ति हुई। इस प्रकार धर्म के प्रभाव से समस्त लोक द्वारा प्रशंसित, अतिशय हर्षित चित्त अत्यंत दीप्तियुक्त देह के धारक, वे दोनों स्त्री-पुरुष भली-भांति सुख का अनुभव करने लगे।।१२२-१३०॥ इति भेगिकभवानुबड भविष्यत् पद्मनाभ पुराणे भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचिते श्रेणिक नन्दश्री विवाहवर्णनं नाम चतुर्थः सर्गः ॥ इस प्रकार होनेवाले श्री पदमनाभ भगवान के जीव महाराज श्रेणिक का भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित कुमारी नन्दश्री के साथ विवाह-वर्णन करनेवाला चौथा सर्ग समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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