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इति विवाह विशेष विमोहितो
ऽजनि जनोवररूपज संपदा | गुणगणाऽहतमानस कस्तयोः
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प्रकटिताखिल तद्गुणमंडनः ।। १२६॥
निरूप्य रूपं वरजं विशालकं
वदंति लोका इति पुण्यसत्फलं । अहोगतिः सुंदर रूप संगति
श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
रहो ध्वनिः पुण्यनृणां च शासनः ॥ १२७ ॥
अहो मुखं चंद्र समानदीधिति
तन्नेत्रयुग्मं नलिनायतं परम् ।
ललाटपट्टं क्व च दीर्घतां गतम्
वरस्य पुण्यं प्रबलं भुवि स्मृतम् ।। १२८ ।।
नंदश्रिया किं कृतमद्यजन्मनि
तपोव्रतं शीलभरः शुभावहः ।
परेऽथवा दानसमूहकः कृतो,
यतोऽनया वीरवरोऽवलंभितः ।। १२ ।
इति कृतवृषपाकाल्लोकशंसां समाप्तौ
जनयत इति मोदं दंपती प्रौढरंगौ । उरूजयुगलकस्याऽनंदभारांगपूर्ते
र्जननसुखसमुद्रे मग्नदेही सुरगहौ ॥ १३०॥
कुमार कुमारी के विवाह का उत्सव नगर में बड़े जोर-शोर से प्रारम्भ हुआ समस्त दिशाओं को सबधिर करनेवाले घंटे बजने लगे। नगर अनेक प्रकार की ध्वजाओं से व्याप्त, मनोहर तोरणों से शोभित, कल्याण को सूचन करनेवाले शुभ शब्दों से युक्त काहल आदि बाजे बजने लगे । नगाड़ों के शब्द भी उस समय खूब जोर-शोर से होने लगे । समस्त जनों के सामने भाँति-भाँति की शोभाओं से मंडित कुमार-कुमारी का विवाह मंडप प्रीतिपूर्वक बनाया गया । बंदीगण कुमार श्रेणिक के यश को मनोहर पद्यों से रचना कर गान करने लगे ।
कुमार श्रेणिक और कुमारी नन्दश्री के विवाह के देखने से दर्शकजनों को वचनागोचर आनंद हुआ। उन दोनों के रूप देखने से दोनों के गुणों पर मुग्ध दोनों की सब लोग मुक्त कण्ठ से
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