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________________ श्रेणिक पुराणम् ततस्तस्या अदाद्धीमान् प्रवालं च गुणान्वितं । विलोक्य हृष्टचेतस्काऽभून्नदश्री परोन्नता ॥११८॥ शरेण कामजेनैव विद्धाऽभून्मदनाकुला। तद्गुणेन च तद्बुध्या तद्रूपाखिलसंपदा ॥११६॥ तदंगजं तदाज्ञाय जनको भूतसंपदः । विवाहार्यं कृतोद्योगो बभूव वणिजां पतिः ॥१२०॥ इन समस्त बातों के बाद कुमारी के मन में फिर कुमार की बुद्धि की परीक्षा का कौतूहल उठा उसने शीघ्र एक अति टेढ़े छेद का मूंगा कुमार को दिया और उसमें डोरा पोने के लिए निवेदन किया, कुमारी द्वारा दिये हुए इस कार्य को कठिन कार्य जान क्षण-भर तो कुमार उसके पोने के लिए विचार करते रहे पीछे भली प्रकार सोच-विचारकर उस डोरे के मुख पर थोडा गुड लपेट दिया और अपनी शक्ति के अनुसार मंगा के छेद में उसको प्रविष्ट कर चींटियों के बिल पर उसे जाकर रख दिया। गुड़ की आशा से जब चींटियों ने डोरे को खींचकर पार कर दिया तब डोरा पार हुआ जानकर कुमार श्रेणिक ने मूंगे को लाकर नन्दश्री को दे दिया। कुमारी नन्दश्री कुमार श्रेणिक का यह अपूर्व चातुर्य देख अति प्रसन्न हुई उसका मन कुमार में आसक्त हो गया। यहाँ तक कि कुमार के श्रेष्ठ गुणों से, उनकी रूप-सम्पदा से कामदेव भी बुरी रोति से उसे सताने लग गया॥११५-१२०॥ विवाहाय महान्यासो मंडपस्य महोन्नतेः । बभूव घटिकाध्वान बधिरीकृत दिक्चयः ॥१२१॥ सेठी इन्द्रदत्त को यह पता लगा कि कुमारी नन्दश्री कुमार श्रेणिक पर आसक्त है। कुमार श्रेणिक को वह अपना वल्लभ बना चुकी। शीघ्र ही राजा के समान सम्पत्ति के धारक इन्द्रदत्त ने कुमारी के विवाहार्थ बड़े आनंद से उद्योग किया ॥१२१॥ केतुमाला समाकीर्णः शुभतोरणराजितः । चंद्रोपककलाकीर्णः शुभंयुः शुभनिस्वनः ॥१२२॥ भेरीणां च महानादाः शंखकाहल निस्वनाः । आनकानां शुभानादा बभूवुदुंदुभिस्वनाः ।।१२३॥ नानाजनसमक्षं वै विवाहवरमंगलम् । तयोरजनि संप्रीत्या परया संपदा सह ॥१२४॥ मांगल्यसंशिनः सर्वे मागधा मगधेशिनः । ऐश्वर्यशांसि संप्राप्त भूमंडलानि सत्वरं ॥१२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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