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________________ श्रेणिक पुराणम् ७३ गहीत्वा सा सखी पानगमद्विटसन्निधि । द्यूतक्रीड़ा प्रदेशे च श्वेतवस्त्राभिमंडिता ॥१०३।। तदग्रे सा बभाणवं यूपवृन्दं परोन्नतम् । देवताधिष्ठितं यस्तु गृह्राति वरभावतः ॥१०४॥ तस्य लाभादिसिद्धिः स्याद्विजयश्च विशेषतः । देवताधिष्ठितं मत्वा श्रुत्वा सर्वे समुद्यताः ॥१०॥ आदातुं च तदैकस्तु कैतवी बहुवित्ततः ।। आददे विजयायेदं सापि द्रव्यं समाददे ॥१०६॥ कुमार के ऐसे प्रतिज्ञा परिपूर्ण एवं अपनी परीक्षा करनेवाले वचन सुनकर कुमारी प्रथम तो एकदम विस्मित हो गई। बाद में उसने बड़े विनय से कहा कि लाइये, अपने चावलों को कृपा कर मुझे दीजिये । कुमारी के आग्रह से कुमार को चावल देने पड़े। तथा कुमार से बत्तीस चावल लेकर उनको कूट-पीसकर कुमारी ने उनके पूए बनाये। उन पूओं को बेचने के लिए अपनी प्रिय सखी निपुणमती को देकर बाजार भेज दिया। कुमारी की आज्ञानुसार सखी उन पूओं को लेकर सफेद वस्त्र पहनकर बाजार की ओर गई। और जहाँ पर जुआ खेला जाता था वहाँ पहुँचकर और किसी जुआरी के पास जाकर उन पूओं की उसने इस प्रकार तारीफ करना प्रारम्भ किया कि ये पूए अति पवित्र देवमयी हैं जो भाग्यवान मनुष्य इनको खरीदेगा उसे अवश्य अनेक लाभ होंगे। सर्व खिलाड़ियों में ये पूए खानेवाला ही विशेष रीति से जीतेगा इसमें संदेह नहीं॥१०३१०६॥ प्रचुरं रित्थमादा य सादान्नंदश्रिय पुनः । सापि नानाविधं चक्र तेन द्रव्येण वल्लनं ॥१०७॥ ततः स वल्लयांचक्रे ज्ञात्वा वल्लनवृत्तक । विकचन्दक्षतां स्वस्य पश्यंस्तद्रूपसंपदं ॥१०८॥ निपूणमती के इस प्रकार आश्चर्य-भरे वचनों पर विश्वास कर एवं उन पूओं को सब ही देवमयी जानकर जुआरियों के मन में उनके खरीदने की इच्छा हुई और खेल में विजय एवं अधिक धन की आशा से उनमें से एक जुआरी ने मुंहमांगी कीमत देकर पूओं को तत्काल खरीद लिया। और कीमत अदा कर दी, कीमत का रुपया लेकर, और कुमार की प्रतिज्ञानुसार भोजन के लिए उसे पर्याप्त जानकर निपुणमती ने उसी समय नन्दश्री को जाकर चुपचाप दे दिया ॥१०७-१०८॥ नागपत्राणि सा तस्मै खदिरादिसुसारकैः । प्रचुरेण च चूर्णेन ददौ युक्तानि संमुदा ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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