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________________ श्रेणिक पुराणम् भो कुमार ! महारूपिन्निद्रदत्तेन त्वं समम् । आयातोऽसि शुभ: पूर्णः चंद्रवक्त्रो विचक्षणः ।। ४६ ।। अबलेशशिवक्त्रेऽहं तेन साकं समागतः । अस्मि कार्यं च यत्तेऽस्ति ब्रूहि नात्रविचारणा ॥ ५० ॥ नन्दश्री के इस प्रकार संतोष भरे वचन सुनकर इन्द्रदत्त ने उत्तर दिया-हे सुते ! जिस कुमार के विषय में तूने मुझे पूछा है अतिशय रूपवान एवं युवा वह कुमार इस नगर के तालाब के किनारे पर ठहरा हुआ है। पिता के मुख से ऐसे वचन सुनते ही कुमार को तालाब के किनारे ठहरा हुआ जानकर नन्दश्री शीघ्र ही भगती-भगती जो पर मनुष्य के मन के अभिप्रायों के जानने में अतिशय प्रवीण थी अपनी प्यारी सखी निपुणमती के पास गई। और निपुणमती के पास पहुँच कर यह कहा कि हे लम्बे-लम्बे नखों को धारण करनेवाली प्रिय सखी निपुणमती! जहाँ पर अत्यंत रूपवान कुमार श्रेणिक बैठे हैं वहाँ पर तू शीघ्र जा। और उनको आनंदपूर्वक यहाँ लिवा ले आ। प्रियतमा सखी ! इस बात में जरा विलम्ब न हो। कुपारी नन्दश्री की यह बात सुनकर प्रथम तो निपुणमती सखी ने खूब अपना शृंगार किया। पश्चात् वह नख में तेल भरकर कुमारी की आज्ञानुसार जिस स्थान पर कुमार श्रेणिक विराजमान थे वहाँ पर गई । वहाँ कुमार को बैठे हुए देखकर एवं उनके शरीर की अपूर्व शोभा को निहारकर उसने अति मधुर वाणी में कुमार से कहा-हे कुमार ! आप प्रसन्न तो हैं? क्या पूर्ण चन्द्रमा के समान मुख को धारण करनेवाले आप ही सेठी इन्द्रदत्त के साथ आये हैं ? ॥४५-५०॥ सा जगाद नराधीश तस्यास्तिशुभपुत्रिका । नंदश्रीः कामकांतेव रूपपानीयनिम्नगा ॥ ५१ ॥ निपुणमती के इस प्रकार चित्ताकर्षक वचन सुन कुमार चुप न रह सके। उन्होंने शीघ्र ही उत्तर दिया कि हे चन्द्रवदनी ! अबले ! मैं ही सेठी इन्द्रदत्त के साथ आया हूँ जो कुछ काम होवे बेरोक-टोक आप कहें और किसी बात का विचार न करें॥५१॥ यत्पयोधरभारेण कृशत्वमगमत्कटि: । तद्रक्षाय नितंबोऽभूत्स्थूलः स्थगितसत्कटि: ॥ ५२ ॥ निर्माय विविधां नारी वेधाविविधकौशलैः । नापश्यत्तत्समानां चान्यां रूपादिसुसंपदा ।। ५३ ।। मुखाद्यंशवितान- भिनत्ति सकलं तमः । पूर्णचंद्रकरप्रख्यः कामिचेतोब्ज का शकः ॥ ५४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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