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श्रेणिक पुराणम्
भोक्ष्यते च पुराभुक्तं शालिवप्रं च पृष्टवान् । हलशाखा च कौलक्य कंटका इति मा वदत् ॥ २६ ॥ अनीदृशा शुभप्रश्नवशात्संक्षितो मया । ग्रथिलोऽयं न संदेहस्तदा पुत्री वचो जगौ ।। २७ ।।
ध्यानपूर्वक पिता के इस प्रकार के वचन सुनकर मनोहरांगी दाँतों की दीप्ति से सर्वत्र प्रकाश करनेवाली, कठिन स्तनी नतांगी कुमारी नन्दश्री ने कहा कि हे पिता ! कृपाकर आप मुझसे कहें जो मनुष्य आपके साथ आया है उसकी आपने क्या चेष्टा देखी है ? उसकी उम्र क्या है ? और किसलिए वह यहाँ पर आया है ?
पुत्री के इस प्रकार वचन सुनकर सेठी इन्द्रदत्त ने कहा कि हे पुत्री ! यदि तेरी लालसा उसके विषय में कुछ जानने की है तो मैं उस मनुष्य के सब वृत्तांत को कहता हूँ, तू ध्यानपूर्वक सुन, मैं लौटकर घर आ रहा था बीच मार्ग में नन्दिग्राम के समीप मेरी उससे भेंट हुई उसी समय से उसने मुझे मामा बना लिया और मार्ग में भी मामा कहकर ही मुझे पुकारा सो यह बता कि कौन ? और कहाँ का रहनेवाला तो वह और मैं कहाँ का रहनेवाला? फिर उसने मुझे मामा कहकर क्यों पुकारा? दूसरे कुछ चलकर फिर उसने कहा कि हम दोनों थक गये हैं इसलिए चलो अब जिह्वारूपी रथ पर सवार होकर गमन करें हे पुत्री यह बात बिलकुल उसने मिथ्या कही थी क्योंकि जिह्वारथ संसार में कोई है यह बात आज तक न सुनी न देखी। पुनः कुछ चलकर एक नदी पड़ी उसमें इसने जूते पहनकर प्रवेश किया। तथा अत्यंत शीतल वृक्ष की छाया के नीचे यह छत्री तानकर बैठा। तथा आगे चलकर एक अनेक प्रकार के मनोहर घरों से शोभित, मनुष्य एवं हाथी, घोड़ा आदि पशुओं से व्याप्त, एक नगर पड़ा उस नगर को देखकर इसने मुझसे पूछा कि हे मातुल ! यह नगर उजड़ा हुआ है कि बसा हुआ? हे पुत्री ! यह प्रश्न भी उसका मन को आनंद देनेवाला नहीं हो सकता। आगे चलकर मार्ग में कोई एक मनुष्य किसी स्त्री को मार रहा था उस स्त्री को देखकर फिर उसने मुझसे पूछा कि हे मामा ! यह स्त्री बँधी हुई है कि खुली हुई ? उसी प्रकार आगे चलकर एक मरा हुआ मनुष्य मिला उसे देखकर फिर उसने पूछा कि यह आज मरा है अथवा पहले का ही मरा हुआ है? आगे चलकर अतिशय पके हुए उत्तम धान्यों से व्याप्त एक क्षेत्र पड़ा उसे देखकर उसने यह कहा कि हे मामा ! इस खेत का मालिक उसके फलों को खावेगा या खा चुका ? इसी प्रकार हल चलाते हुए किसी एक किसान को देखकर उसने पूछा कि इस हल पर हल के चलानेवाले कितने मनुष्य हैं ? तथा आगे चलकर एक बेरी का वृक्ष पड़ा उसको देखकर उसने यह कहा कि हे मातुल ! इसमें कितने काँटे हैं इत्यादि उसके द्वारा किये हुए अयोग्य, पूर्वापर विचार रहित प्रश्नों से मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह कुमार अवश्य पागल है॥१८-२७॥
दक्षः स निपुणो ज्ञेयो विज्ञाता ग्रथिलो नहि । यदुक्तं माम इत्येवं त्वां च तद्रम्य मिष्यते ॥ २८ ॥
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