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________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् महोदय सेठी इन्द्रदत्त के पीन एवं उन्नत स्तनों से शोभित, चन्द्रमुखी कोकिला के समान मधुर बोलनेवाली पिकवैनी नन्दश्री नाम की कन्या थी। उस कन्या ने अपने मनोहर कण्ठ से कोकिला को जीत लिया था। वह मुख से चन्द्रमा को, नेत्रों से कमल-पत्र को और हाथ से कमल पल्लव को जीतनेवाली थी। उसके केशों के सामने मनोहर नीलमणि भी तुच्छ मालूम पड़ती थी गति से वह हंसिनी की चाल नीची करनेवाली थी एवं स्तनों से उसने सुवर्ण कलशों को नितम्बों से उत्तमोशिला को, रूप से कामदेव की स्त्री रति को तिरस्कृत कर दिया था। जिस समय इस कन्या ने अपने पिता इन्द्रदत्त को देखा तो शीघ्र ही उसने प्रणामपूर्वक कुशलक्षेम पूछी। तथा कुशलक्षेम पूछने के बाद अपनी मनोहर वाणी से यह कहा कि हे पूज्य पिता! आपके साथ कोई भी उत्तम बद्धिमान मनुष्य आया हआ नहीं दीखता। परदेश से आप किसी मनुष्य के साथ-साथ आये हैं अथवा अकेले ? पुत्री के ऐसे वचन सुनकर उन वचनों के तात्पर्य को भी भलीभाँति समझकर सेठी इन्द्रदत्त ने हर्षपूर्वक उत्तर दिया कि हे पुत्री ! मेरे साथ एक मनुष्य अवश्य आया है और वह अत्यन्त रूपवान, युवा, गुणी, मनोहर, तेजस्वी और बुद्धिमान है। तथा वह भनुष्य अपने को मगध देश के स्वामी महाराज उपश्रेणिक का पुत्र कुमार श्रेणिक बतलाता है । यद्यपि वह तेरे लिए सर्वथा वर के योग्य है तथापि उसमें एक महाभारी दोष है कि वह विचार रहित वचन बोलने के कारण मूर्ख मालूम पड़ता है ॥६-१७॥ इत्याकाह कम्रांगी दंतदीप्पितिदीपिता । कठिनस्तननम्रांगा जनकस्य वचः स का ।। १८ ।। ताताद्येहितमस्य त्वं वदत्वत्सार्द्धगामिनः । क्व स्थितस्य च यः किं स यातः कस्मात् सविस्तरं ।। १६ ॥ रराणचेंद्रदत्ताख्यस्तनुजे तस्य वृत्तकम् । विद्धि सर्वं मयाद्यत्वमानंदिग्नामृतः स्फुटं ॥ २० ॥ मध्ये सभां समायातो नंदिग्रामस्य मां जगौ । मातुलेति वचश्चोक्त्वा को हंसः कः कथं मयि ।। २१ ।। मामभूयं च वर्तेत रसज्ञारथरोहणम् । कथं भवति भो पुत्र्याऽऽजन्मादृष्टं मृषोद्भवं ।। २२ ॥ पादत्राणं जले छत्रं महीरुहमहीतले । पुनरुन्नत शालाढ्यं दृष्ट्वा पप्रच्छमुग्धहृत् ॥ २३ ॥ वसते चोद्वसंवाहो नगरं नरसंश्रितं । श्रेयस्कारी कथं प्रश्नश्चित्तालादकरः सुते ।। २४ ।। ताड्यमानां वधूं वीक्ष्य बद्धा मुक्तेति संजगौ । मृतकं वीक्ष्य चाद्यैव प्राणत्यक्तं पुराथवा ॥ २५ ॥ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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