SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक पुराणम् कांता पुत्रांगजाभिः स लोक्यमानो मुहुर्मुहुः । सार्थकं सफलं जन्म मेने पूर्ववृषोदयात् ॥ ८ ॥ इन्द्रदत्त के उस प्रकार के वचनों को सुनकर कुमार श्रेणिक तो तालाब के किनारे पर बैठ गये और सेठी इन्द्रदत्त ने अपने नगर की ओर गमन किया। ज्योंही इन्द्रदत्त अपने घर में पहुंचे और जिस समय वे अपने कुटुम्बियों से मिले तो उनको अति आनन्द हुआ, मारे आनन्द के उनके दोनों नेत्र फूल गये, अंग रोमांचित हो गया और मुख भी कांतिमान हो गया। तथा जिस समय स्त्री, पुत्र और पुत्रियों ने उनका सम्मान किया और प्रेम की दृष्टि से देखा तो उन्होंने पूर्वोपार्जित धर्म के प्रभाव से अपना जन्म सार्थक जाना और अपने को कृतकृत्य समझा ॥७-८॥ तस्यास्ति तनुजा रम्या पीनोन्नतपयोधरा । शशांकवदना सारा नंदश्रीः कोकिलस्वना ॥ ६ ॥ कंठेन कोकिलध्वानं वक्त्रेण चंद्रदीधिति । नेत्रण पद्मपत्रं च करेण पद्मपल्लवम् ।। १०॥ पुनर्भावन ताराभां कचेन नीलसन्मणिम् । गत्या मरालसंरंभास्तनेन हेमकुंभकं ॥ ११॥ नितंबन शिलां सारां रूपेण रतिकामिनीं । क्रीडया वर पद्मा च या जिगाय तनुश्रिया ॥ १२ ।। सा प्रेक्ष्य जनकं कांतं प्रणम्य विनयांकिता । कुशलप्रश्नपूर्वं चावादीद्गंभीर सगिरा ॥ १३ ॥ पितः केन जनेनामाऽऽटितस्त्वं किमुच्चकैककः । सहगामी न वीक्ष्येत यतः कश्चिन्नरोत्तमः ॥ १४ ॥ अवगम्य वचः पुत्र्याः प्रहसद्वदनाब्जकः । बभाष तनुजे चैक: सहगामी समस्तिवै ॥ १५ ॥ रूपी युवा गुणाक्रांतः कांतिमंडितविग्रहः । बुद्धया जीव समानत्वं यस्ततान महामनाः ॥ १६ ॥ मागधाधिपपुत्रोऽसौ पुत्रिसाकं समाटितः । तवयोग्यवरः किंतु ग्रथिलो मूर्खतांकितः ॥ १७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy