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श्रेणिक पुराणम्
मित्रता? संसार में कर्मों का फल विचित्र और अलक्ष्य है, किन्तु यह नियम है कि जीवों के समस्त अशुभ कार्यों का नाश धर्म से ही होता है, धर्म से ही शुभ कर्मों की प्राप्ति होती है। संसार में धर्म से प्रिय वस्तुओं का समागम होता है इसलिए जिन मनुष्यों की उपर्युक्त वस्तुओं के पाने की अभिलाषा है उन्हें चाहिए कि वे सदा अपनी बुद्धि को धर्म में ही लगावें ॥१७८-१८२॥
इति श्रेणिक भवानुबद्धभविष्यत्पद्मनाभ पुराणे (भट्टारक श्रीशुभचंद्राचार्य विरचिते)
श्रेणिकराजगृहान्निर्गमनं नाम तृतीयः सर्गः ।।३।।
इस प्रकार भविष्यतकाल में होनेवाले श्री पदमनाभ तीर्थंकर के जीव
श्री महाराज श्रेणिक के चरित्र में भद्रारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित कुमार श्रेणिक का राजगृह से निष्कासन कहनेवाला तीसरा सर्ग
समाप्त हुआ।
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