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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् को समझानेवाला है वही धर्म वास्तविक धर्म है एवं वही सेवन करने योग्य है उससे भिन्न कोई भी धर्म सेवने योग्य नहीं। हे राजकुमार ! विज्ञान, वेदना, संस्कार, रूप, नाम--ये पाँच प्रकार की संज्ञाएँ ही तीनों लोक में दु:ख स्वरूप हैं पाँच प्रकार के विज्ञान आदिक मार्ग समुदाय और मोक्ष ये तत्त्व हैं अष्टांग मोक्ष की प्राप्ति के लिए इन्हीं तत्त्वों को समझना चाहिए। यह समस्त लोक क्षणभंगुर नाशवान है कोई पदार्थ स्थिर नहीं। चित्त में जो पदार्थ सदा काल रहनेवाला नित्य मालूम पड़ता है वह स्वप्न के समान भ्रम स्वरूप है। तथा जो ज्ञान समस्त प्रकार की कल्पनाओं से रहित निर्धान्त अर्थात् भ्रम भिन्न और निर्विकल्प हो, वही प्रमाण है किन्तु सविकल्पक ज्ञान प्रमाण नहीं है वह मृगतृष्णा के समान भ्रमजनक ही है। जिन तत्त्वों का वर्णन बौद्ध धर्म में किया है वे ही वास्तविक तत्त्व हैं। इसलिए यदि तुम अपने पिता के राज्य की प्राप्ति के लिए उत्सुक हो मगध देश के राजा बनना चाहते हो तो आप समस्त इष्ट पदार्थों का सिद्ध करनेवाला बौद्ध धर्म शीघ्र ही ग्रहण करें। यदि आपको राजा बनने की इच्छा है तो आप बौद्ध धर्म को ही अपना मित्र बनायें क्योंकि इस धर्म से बढ़कर दुनिया में दूसरा कोई भी मित्र नहीं है। बौद्धाचार्य के इन वचनों ने कुमार श्रेणिक के पवित्र हृदय पर पूरा प्रभाव जमा दिया, कुमार श्रेणिक ने बौद्धाचार्य के कथनानुसार बौद्ध धर्म धारण किया एवं उस बौद्धाचार्य के चरणों को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर बौद्ध धर्म के पक्के अनुयायी बन गये। अतिशय निर्मल चित्त के धारक कुमार श्रेणिक ने उसी बौद्धाश्रम में इन्द्रदत्त सेठी के साथ-साथ स्नान, अन्न, पानादि से मार्ग की थकावट दूर की। तथा राज्य की ओर से जो उनका अपमान हुआ था और उस अपमान से जो उनके चित्त पर आघात हुआ था उस आघात को भी वे भूलने लगे और उस बौद्धाचार्य के साथ कुछ दिन पर्यन्त वहीं पर रहे ॥१४०-१५४।।
श्रुतवृत्तांतकेनैव श्रींद्रदत्तेन श्रेष्ठिना । ज्ञात्वायं पुण्यवान्नित्यं चेले तेन विराजितः ।।१५५।। पश्यंतौ वनवीथीं तौ कदाचिगिरिकंदरं । कदाचित्केकिनां नृत्यं चेलतुः परमोत्सवौ ।।१५६।। मार्गातिक्रमणात्तौद्वौ श्रमाक्रांतौ बभूवतुः । श्रमाक्रांतस्तदा प्राह श्रेणिको वरया गिरा ।।१५७।।
अनन्तर इसके अब यहाँ पर अधिक रहना ठीक नहीं यह विचार कर, अतिशय हर्षित चित्त, बौद्ध धर्म के सच्चे अनुयायी कुमार श्रेणिक उस स्थान से चले । यह समाचार सेठी इन्द्रदत्त ने भी सुना सेठी इन्द्रदत्त भी यह जानकर कि कुमार श्रेणिक अत्यंत पुण्यात्मा है कुमार के पीछेपीछे चल दिये। इस प्रकार वन-मार्गों को देखते हुए, अनेक प्रकार की पर्वत-गुफाओं को निहारते हुए, मत्त मयूरों के नृत्य को आनन्दपूर्वक देखते हुए, वे दोनों महोदय जब कुछ दूर तक गये तब कुमार श्रेणिक ने अति मधुर वाणी से सेठी इन्द्रदत्त से कहा ॥१५५-१५७।।
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