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________________ श्रेणिक पुराणम् भगवान्वचनं जगौ । विश्वविज्ञानपारगः ॥ १४६ ॥ को धर्म इति संप्रश्ने सुगतोऽति महादेवो चतुरार्यसत्यरूपस्य तत्वस्य कथकः स्वयं । स एव सेव्यो नान्यस्तु क्षणक्षयविवेदकः । । १४७ ।। विज्ञानं वेदना राजन् संस्कारो रूपनाम भाक् । संक्षेति पंचधा दुःखं विद्धि लोकत्रयात्मकं ॥ १४८ ॥ क्षणक्षयात्मको लोको नश्वरो न स्थिरा मतिः । यद्भाति शाश्वतं चित्ते स्वप्नप्रख्यं च तन्मतं ॥ १४६ ॥ तत्वं गद्गदितं सत्यं शौद्धोदनिमतो वृषः । अंगीकार्यस्त्वया शीघ्र पितृराज्यप्रलब्धये ॥ १५०॥ राज्यवांछा भवेच्चित्ते तर्हि धर्मं च सौगतं । गृहाण मित्र ! विद्धि त्वं मित्रधर्मान्नचापरं ।। १५१ । इतिवाक्य प्रबंधेनाग्रही द्ध स सौगतं । प्रणम्य तत्पदद्वंद्वं साक्षात्सौगतधर्मभाग् ।।१५२।। ततः स्नानान्नपानाद्यैरध्वदुःखं च मानसम् । अत्यजत् तेन साकं स श्रेणिकः शुद्धमानसः ॥ १५३॥ दिनानि कतिचित्तत्र तेनामा श्रेणिकः स्वयं । स्थित्वा चचाल संदुष्टचेता बौद्धवृषोद्यतः ॥ १५४॥ मगध देश के स्वामी महाराज उपश्रेणिक के पुत्र बुद्धिमान कुमार श्रेणिक तुम कहाँ जा रहे हो ? अकेले यहाँ पर आप कैसे आये ? कुमार ने उत्तर दिया- राजा ने कोप कर हमें देश से निकाल दिया है । फिर बौद्ध संन्यासियों के आचार्य ने कहा- हे कुमार ! अब आप भोजनादि कीजिए फिर मेरे हितकर वचनों को सुनिये । कुमार ! आप कुछ दिन बाद नियम से मगध देश के राजा होवेंगे इसमें आप जरा भी सन्देह न करें। मेरे वचनों पर आप विश्वास कीजिए और आप सुख की प्राप्ति के लिए शीघ्र ही बौद्ध धर्म को ग्रहण कीजिए। इस बौद्ध धर्म की कृपा से ही आप - को निस्सन्देह राज्य की प्राप्ति होगी । विश्वास कीजिए व्रतों के करने से तथा उपवासों के आचरण करने से हमारे समस्त कार्यों की सिद्धि होती है हमारा यह उपदेश है कि आप राज्य की प्राप्ति के लिए निश्चल रीति से बौद्ध धर्म को धारण करें । Jain Education International ५१ हे कुमार ! किसी समय जब संसार में यह प्रश्न उठाया था कि धर्म क्या है ? उस समय समस्त विज्ञान के पारगामी महादेव भगवान बुद्ध ने यह वचन कहा था कि हे चतुरार्य, जो धर्म वास्तविक रीति से सच्चे आत्म के स्वरूप को बतलानेवाला है, और समस्त पदार्थों के क्षणिकत्व For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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