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________________ श्रेणिक पुराणम् ५३ हे मातुल ! श्रमाक्रांता वावां जातौ च सत्पथि । जिह्वारथं च तद्धान्य याव आरुह्य सत्वरं ॥१५८।। स श्रुत्वा विस्मयीभूत्त्वाचितयच्चेति मानसे । न दृष्टो न श्रुतो लोके रसज्ञारथ उन्नतः ।।१५६।। आरोहणं कथं तत्र ग्रथिलोऽयं नरः स्फुटं । वितक्येति निजे चित्ते तूष्णीत्वेन स्थितोवणिक् ॥१६०।। हे श्रेष्ठिन् (मातुल) चलते-चलते इस मार्ग में मैं और आप थक गये हैं इसलिए चलिये जिह्वारूपी रथ पर चढ़कर चलें। कुमार की इस आकस्मिक बात को सुनकर अचम्भे में पड़कर सेठी इन्द्रदत्त ने विचारा कि संसार में कोई जिह्वारथ है यह बात न तो हमने आज तक सुनी और न साक्षात् जिह्वारूपी रथ ही देखा । मालूम होता है यह कुमार कोई पागल मनुष्य है ऐसा थोड़ी देर तक विचार कर सेठी इन्द्रदत्त चुप हो गये उन्होंने कुमार श्रेणिक से बातचीत करना भी बन्द कर दिया एवं दोनों चुपचाप ही आगे को चलने लगे॥१५८-१६०॥ गच्छंतावग्रतो मार्ग शुभचिंतनतत्परौ । दवशतुर्नदी रम्यां जलाकीर्णां च तृप्तिदां ॥१६१॥ उपानही पदे कृत्वा नद्यां स श्रेणिकोऽविशत् । अंहितस्ते वणिग् नद्यां निष्कास्य विशतिस्म च ॥१६२।। पादत्राणसमायुक्तं जले दृष्ट्वा स मागधं । ग्रथिलं तं निजे चित्ते निश्चिनोतिस्मभूमिस्पृक् ।।१६३।। अन्येऽहो पुरुषा नीरे समुत्तार्याहिरक्षणम् । प्रविशंति महामूर्योऽयं सोपानत् कथंविशेत् ॥१६४।। थोड़ी दूर आगे जाकर, अपने निर्मल जल से पथिकों के मन तृप्त करनेवाली अत्यंत निर्मल जल से भरी हुई एक उत्तम नदी उन दोनों ने देखी, नदी को देखते ही कुमार श्रेणिक ने तो अपने जूते पहनकर नदी में प्रवेश किया। और सेठी इन्द्रदत्त ने पैरों से दोनों जूतों को पहले उतारकर हाथ में ले लिया बाद में नदी में घुसे। मगध देश के कुमार श्रेणिक को जूते पहनकर जब उन्होंने नदी में प्रवेश करते हुए देखा तो सेठी इन्द्रदत्त और भी अचम्भा करने लगे और उनको इस बात का पक्का निश्चय हो गया कि कुमार श्रेणिक जरूर कोई पागल पुरुष है। तथा कुमार श्रेणिक के काम से उन्होंने अपने मन में यह विचार किया कि अन्य बुद्धिमान पुरुष तो यह काम करते हैं कि जल में जूता उतारकर घुसते हैं किन्तु कुमार श्रेणिक ने जूता पहने ही नदी में प्रवेश किया मालूम होता है कि यह साधारण मूर्ख नहीं बड़ा भारी मूर्ख है ॥१६१-१६४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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