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________________ ४८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् राजा ने जो कुमार को नगर से निकाल दिया है तो अज्ञान से ही निकाला है क्योंकि बड़े खेद की बात है कि कुमार श्रेणिक तो अद्वितीय भाग्यवान सर्वथा राज्य के योग्य, अद्वितीय दाता और भोक्ताथा बिना विचारे महाराज उपश्रेणिक ने उसे कसे नगर से निकाल दिया! इस प्रकार कुमार श्रेणिक के नगर से चले जाने पर अत्यंत उन्नत कोलाहलयुक्त नगर भी शान्त हो गया। कुमार के शोक से समस्त पुरवासी दुःख-सागर में गोता लगाने लगे। वह कौन-सा दुःख न था जो कुमार के वियोग में पुरवासियों को न सहना पड़ा हो॥१०८-१२१॥ अथ श्रेणिकभूपालो गच्छन्मार्गे विषण्णधीः । दुःखपूराढ्यवक्त्राब्जश्चितयामास मातरम् ।।१२२।। एकाकी स शनैर्मागं गमयन्मति मे दुरः । निर्जनामटवीं पश्यत्केकिकेकाविराजितां ॥१२३॥ दूराद्ददर्शशालाढ्यं नंदिग्राम मनोहरम् । केतुमालासमालीढ गृहराजी विराजितम् ॥१२४।। शनैः शनै महाधीरः प्राप्य तस्य प्रतोलिकां। तस्थौ तत्र क्षणं पश्यन् द्वारशोभामपूर्विकां ।।१२।। ततः प्रविश्य तं ग्रामं संप्रापद्राजमंडपम् । स्रग्घंटातोरणोद्भासि विकासितसुसंपदम् ।।१२६।। वयो ज्येष्ठं गणाकीर्णमिंद्रदत्तं मनोहरम् । अपश्यच्छष्ठिनं तत्र महाप्रीतिकरं परम् ॥१२७।। ___ इधर पुर तो कुमार के शोक-सागर में मग्न रहा उधर कुमार श्रेणिक मार्ग में जाते-जाते कुछ दूर चलकर अत्यंत दुःखित एवं अपमानजन्य दुःख के प्रवाह से जिनका मुख फीका हो गया है, माँ को स्मरण करने लगे। तथा और भी आगे कुछ धीरे-धीरे चलकर बुद्धिमान कुमार श्रेणिक मयर शब्दों से शोभित किसी निर्जन अटवी में जा पहुँचे। वहाँ से अनेक प्रकार के धान्यों से शोभित कोई मनोहर नंदिग्राम उन्हें दीख पड़ा। महाधीर-वीर कुमार धीरे-धीरे उसी नगर की ओर रवाना होकर उस नगर के द्वार पर आ पहुँचे। द्वार की अपूर्व शोभा निरखते हुए वहाँ पर ठहर गये पीछे उस नगर में प्रवेश कर कुमार श्रेणिक अनेक प्रकार के माला, घण्टा, तोरण आदिकर शोभित. अत्यंत मनोहर, श्रेष्ठ सम्पत्ति के धारक राजमन्दिर के पास पहुँचे और वहाँ उन्होंने अत्यंत वृद्ध नाना प्रकार के गुणोंकर मण्डित, मनोहर, अतिशय प्रीति करनेवाले, उत्कृष्ट, किसी इन्द्रदत्त नाम के सेठी को देखा और उससे कहा ॥१२२-१२७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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