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श्रेणिक पुराणम्
मया
किम ॥ ११६ ॥
किम् ।
सखि ॥११७॥
किं वा दावानलेनैव संदग्धं व्रतभंगः कृतः किंवा रात्रौ भुक्तं मुनिनिंदा कृता किंवा परद्रोहः कृतः परमर्मान्वितं वाक्यमुक्तं किंवा मया इहाकारि मया पापं किं वा परभवे महत् । न वेद्मीति कृतालापा रोदितिस्म मुहुर्मुहुः ॥ ११८ ॥ नागराश्च तदा सर्वे हाहाकारं व्यधुः शुचा । अज्ञानेनैव राज्ञायं देशान्निर्घाटितः शुभः ॥ ११६॥ सौभागी राज्ययोग्योऽयं दाता भोक्ता गुणाग्रणीः । निर्द्धाट्यते कथं राज्ञा बुद्धित्यक्तसुचेतसा ॥१२०॥ इतिशोकाकुलं जातं पुरं सांतः पुरं वरम् । निर्गमे श्रेणिकस्यैव तत्किं नाजनि दुष्कृतं ॥१२१॥
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वनमद्भुतं ।
कुमार की माता महारानी इन्द्राणी के कान तक यह बात पहुँची कि कुमार श्रेणिक को देशनिकाला हुआ है, सुनते ही वह इस प्रकार भयंकर रुदन करने लगी, हा पुत्र ! हा महाभाग ! हे कमल के समान नेत्रों को धारण करनेवाले ! हा कामदेव के समान ! हा अत्यंत पुण्यात्मा हा अत्यंत शुभ लक्षणों को धारण करनेवाले ! हा गजेन्द्र की सूंड के समान लम्बे-लम्बे हाथों के धारक ! हा कोकिल के समान प्यारी बोली के बोलनेवाले ! हा कमल के समान उत्तम मुख के धारक ! हा उत्तम एवं ऊँचे ललाट से शोभित ! हा कामदेव के समान मनोहर शरीर के धारक ! हा कामदेव के समान विलासी ! हा सुन्दर ! हा शुभाकर ! हा नेत्रप्रिय ! हा सन्तोष के देनेवाले ! हा शुभ ! हा राज्य के धारण करने में शूरवीर ! हा प्रिय ! हा सुन्दर आकृति के धारण करनेवाले ! कुमार, मुझ दुःखिनी माँ को छोड़कर तू कहाँ चला गया ! जो वन अनेक प्रकार के भयंकर सिंह- व्याघ्रों से भरा हुआ है उस वन में तू कहाँ पर होगा ? हाय पूर्वभव में मैंने ऐसा कौन-सा घोर पाप किया था ! जिससे इस भव में मुझे ऐसे उत्तम पुत्ररूपी रत्न का वियोग सहना पड़ा । हाय क्या पूर्व भव में मैंने किसी माता से पुत्र का वियोग कर दिया था अथवा श्री जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा का मैंने उल्लंघन किया था ! वा मैंने अपने शील का मर्दन किया था व्यभिचार का आश्रय किया था ! अथवा मैंने किसी तालाब का पुल नष्ट किया था ! वा मलिन जल से मैंने वस्त्र धोये थे ? किंवा अग्नि से मैंने किसी उत्तम वन को भस्म किया था ! वा मैंने व्रत का भंग कर दिया था ! अथवा मैंने रात में भोजन किया था ! अथवा मुझसे किसी दिगम्बर मुनि की निन्दा हो गई थी ! किंवा मैंने किसी से द्रोह किया था ! वा पर-वचन की मैंने अवज्ञा कर दी थी ? अथवा मैंने इस भव में पाप किया है ? जिससे मुझे ऐसे उत्तम पुत्ररत्न से जुदा होना पड़ा ।
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इस प्रकार बारम्बार कुमार श्रेणिक की माता इन्द्राणी का करुणाजनक भयंकर रुदन सुनकर समस्त नगर में हा-हाकार मच गया । समस्त पुरवासी लोग करुणाजनक स्वर से कुमार श्रेणिक के लिए रोने लगे और परस्पर कहने लगे कि :
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