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________________ ૧૪ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् क्षणमास्थाय मंत्री स प्रणम्य वचनं जगौ । कुमारं तं महास्नेहगिरा मंत्रादिकार्यवित् ॥ ९३॥ भो कुमार ! हितं वाक्यं शृणुत्वं मे हितावहम् । कोपोऽभूदपराधः किं करिष्यसि भूपतेः ।। ६४ ।। राज्ञः कोपे च भो पुत्र ! न स्थातव्यं त्वया क्षणं । आकर्ण्ये कृपांमे पुत्रः कोऽपराधो मया कृतः ।। ६५ ।। मन्त्रिन् ! इस कार्य को तुम शीघ्र करो इसमें देरी करना ठीक नहीं है इस प्रकार महाराज उपश्रेणिक की आज्ञा को सिर पर धारण कर वह मतिसागर नाम का मन्त्री कुमार श्रेणिक के समीप में गया । जिस समय वह कुमार के पास गया तो अपने पास बुद्धिमान मतिसागर मन्त्री को आते देखकर अत्यन्त चतुर कुमार श्रेणिक ने उसका बड़ा भारी सम्मान किया और परस्पर बड़े स्नेह से उन दोनों ने कुशल भी पूछा थोड़ी देर तक कुमार श्रेणिक के पास बैठकर तथा कुमार भलीभाँति प्रणाम कर मन्त्री मतिसागर ने यह वचन कहा कि : हे कुमार आप मेरे मनोहर तथा हितकारी वचन को सुनिए आपके अपराध से महाराज उपश्रेणिक को बड़ा भारी क्रोध उत्पन्न हुआ है वे आप पर सख्त नाराज हैं न जाने वे आपको क्या दंड देवेंगे ? और क्या अहित न कर दें क्योंकि राजा के कुपित होने पर आपको यहाँ पर नहीं रहना चाहिए मन्त्री मतिसागर के इस प्रकार अश्रुतपूर्व वचन सुनकर कुमार श्रेणिक ने उत्तर दिया कि ।।६१-६५॥ Jain Education International मंत्रयुबाच महाभाग भुक्ते कुक्कुरवंद । अन्ये पुत्राः गताः सर्वे त्वया भुक्तं कथं वद ।। ६६ ।। दोषोऽयं दृश्यते पुत्र राज्ञः कोपोपदीपनः । समीचीनः स किं भुंक्ते श्वास्पर्शान्नीचहेतुकान् ॥ ६७ ॥ कृपाकर आप बतावें, मेरा क्या अपराध हुआ है ? इस प्रकार कुमार के बोलने पर मन्त्री मतिसागर ने उत्तर दिया कि जिस समय तुम सब कुमारों के भोजन करते कुत्ते छोड़े गये थे और जिस समय समस्त पात्रों को झूठा कर दिया था उस समय तुमसे भिन्न सब कुमार तो भोजन छोड़कर चले गये थे और यह कहो तुम अकेले क्यों भोजन करते रह गये थे ? इसलिए ऐसा मालूम होता है कि महाराज की नाराजी का यही कारण है और यह बात ठीक भी है क्योंकि नीचता का कारण कुत्तों से छुआ हुआ भोजन अपवित्र भोजन ही कहलाता है मन्त्री मतिसागर की इस बात को सुनकर और कुछ हँसकर कुमार ने मनोहर शब्दों में उत्तर दिया कि ।। ६६-६७।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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