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________________ ४२ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् करें उसके दूर करने के लिए अनेक उपाय मौजूद हैं उसकी शीघ्र ही निवृत्ति हो सकती है। यदि आप इस समय उसको नहीं बतलायेंगे तो ठीक नहीं, क्योंकि राजा के चिन्ताग्रस्त होने से पुरवासी मंत्री आदिक सब ही चिन्ताग्रस्त हो जाते हैं उनको भी दुःख उठाना पड़ता है क्योंकि 'यथा राजा तथा प्रजा' अर्थात् जिस प्रकार का राजा हुआ करता है उसकी प्रजा भी उसी प्रकार की हआ करती है। इस प्रकार अत्यंत बुद्धिमान सुमति नामक मंत्री की इस बात को सुन महाराज उपश्रेणिक बोले कि हे सुमते! मुझे देश आदि अथवा पुत्र आदि की ओर से कुछ भी चिंता नहीं है, किंतु चिंता मुझे इस बात की है कि मैं इस राज्य को किस पुत्र को प्रदान करूँ। मंत्री ने उत्तर दिया॥७१ ७६॥ राजाऽगदीद्वचो धीमन् मया पूर्वं वनांतरे। तिलकादिवती राश्या दत्तं राज्यं च सूनवे ॥ ८०॥ नैमित्तिको मया पृष्टस्तेनाऽभाषि निमित्ततः । श्रेणिकस्य महाराज्यं कि करोम्यधुना वद ।। ८१॥ यदि मे वचनं याति धिग् धिग् मे जीवितंवरं । कृतं सुकृतमाप्नोति निष्फलत्वं न संशयः ॥ ८२ ॥ सप्तधातुमयो देहो निस्सार: शुभवर्जितः । तत्रास्ति वचनं सारं जीवितादस्थिरात्पुनः ॥ ८३ ।। सारं वचनमेवात्र वदंत्यार्या न संशयः । वचो न रक्षितं येन सुकृतं तेन हारितम् ॥८४ ॥ शरीरं नश्वरं विद्धि जीवितं क्षणचंचलम् । अस्थिराः संपदो लोके स्थिरमेकं वचो मतम् ॥ ८५॥ इति मत्वा त्वया मंत्रिन् मम वाक्यं प्रमाणताम् । नेतव्यं येन मे जन्म सार्थकत्वं समाश्रयेत् ।। ८६ ॥ मतिसागर इत्याख्यदाकर्ण्य वचनं प्रभोः । विषादः कोऽत्र राजेंद्र का चिंताल्यविचारणे ॥ ८७ ॥ चितयामि यदा राजन् स्वर्गराज्यस्य विक्रियां। करोमि धरणस्यापि को विचारोऽब्र स्वल्पके ॥ ८८ ।। देशाद्बहिर्गतं राजन् करोमि श्रेणिकं सुतम् । त्याज्या चिंता त्वया धीमन्ननया चिंतया किमु ॥ ८६ ॥ श्रुत्वेति वचनं भूपस्तुतोष शुभवादतः । कुरु कार्यमिदं मंत्रिन्नो विलंबो विधीयतां ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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