________________
श्रेणिक पुराणम्
सुमतिर्मतिमान् प्राह श्रुत्वा वाक्यं प्रभोः परम् ।
भो राजन् भो महीनाथ नमिताखिलभूपते ॥ ७१ ॥
घोटका : संति राजेन्द्र दारयंतः खुरैर्भूमि बहवः दंतिनो दंतखंगेन दारयंतः
जितेंद्रसुतुरंगमाः । प्रभुभक्तिकाः ॥ ७२ ॥ स्ववैरिणाः ।
अंजनाभा महाकाया वर्त्तते भूपमंदिरे ॥ ७३ ॥ पदातयः परं प्रीता रथालिंगितदीप्तिकाः । आसते बहवः स्वामिस्त्वद्गृहे स्वामिभक्तिकाः ॥ ७४ ॥ न देशे वैरिणः केऽपि दायादान ह्यनाज्ञकाः । पुत्रा अवशिनो नोन राज्ञ्यः कौटिल्यसंयुताः ।। ७५ ।। कुतश्चिता प्रभोश्चिते कथनीयं प्रभो लघु । तत्कारणं च निःशेषं तच्चिताहानये नृप ।। ७६ ।। राज्ञि चिंताकुले सर्वे लोका: पौराश्च मंत्रिणः । बोभूयंते सचिता हि यथा राजा तथा प्रजाः ।। ७७ ।। इत्यादीद्राजा वचनं स्वमनोगतं ।
Jain Education International
भो मंत्रिन् सुमते नास्ति चिंता देशादि संभवा ॥ ७८ ॥ किंतु राज्यकृते चिंता कस्मिन्राज्यं क्षिपाम्यहं । मंत्री प्राह प्रदातव्यं श्रेणिकाय शुभाय च ॥ ७६ ॥
महाराज की इस विचित्र बात को सुनकर अन्य मंत्रियों ने तो कुछ भी उत्तर न दिया पर अत्यंत बुद्धिमान सुमति नाम के मंत्री ने कहा । हे प्रभो ! हे राजन् ! हे समस्त पृथ्वी के स्वामी ! हे समस्त वैरियों के मस्तकों को नीचे करनेवाले ! महाभाग ! आप सरीखे नरेन्द्रों को किस बात चिन्ता हो सकती है । हे प्रभो, देवों के घोड़ों को भी अपने कला-कौशल से जीतनेवाले अनेक
૪૨
आप यहाँ मौजूद हैं, जो कि अपने खुरों के बल से तमाम पृथ्वी का चूर्ण कर सकते हैं, और आपकी भक्ति में सदा तत्पर रहते हैं। अपने दाँत रूपी खंगों से तमाम पृथ्वी को विदारण करनेवाले अंजन पर्वत के समान लम्बे-चौड़े आपके यहाँ अनेक हाथी मौजूद हैं । हे राजेन्द्र ! आपके मन्दिर भाँति आपकी आज्ञा के पालन करनेवाले अनेक पदाति सेना भी मौजूद है। और रथी शूरवीर भी आपके यहाँ बहुत हैं जो कि संग्राम में भलीभाँति आपकी आज्ञा के पालन करनेवाले हैं । आपको किसी वैरी की भी चिन्ता नहीं है क्योंकि आपके देश में आपका कोई वैरी भी नजर नहीं आता आपके धन तथा राज्य का कोई बाँटनेवाला (दयाद) भी नहीं है और आपके पुत्र भी आपकी आज्ञा के पालन करनेवाले हैं । आपके राज्य में कोई आपको विरोधी कुटिल भी दृष्टिगोचर नहीं होता, फिर हे प्रभो, आपके मन में किस बात की चिंता है ? आप उसे शीघ्र प्रकाशित
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org