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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
इति चिंताप्रपन्नेन सुमतिर्मतिसागरः । मंत्रिणोऽन्ये तदा राज्ञा कारिताः कार्यसिद्धये ॥ ६६ ॥ भो ! धीमंतो महामात्याश्चितास्ति मम मानसे । कथं निवर्त्यतेऽस्माभिः परासर्वांगशोषिका ॥ ७० ॥
ज्योतिषी के बतलाये हुए इतनी परीक्षाओं में कुमार श्रेणिक को उत्तीर्ण देख महाराज उपश्रेणिक को संतोष न हुआ अतएव उन्होंने ज्योतिषी के बतलाये हुए अन्तिम निमित्त की परीक्षा के लिए फिर भी किसी समय अपने राजकुमारों को बुलाया तथा प्रत्येक घर में महाराज उपश्रेणिक ने अत्यंत मधुर लड्डू ओंस से भरे हुए एक-एक पिटारे का मुख बंद कर रखवा दिया और उसके साथ में अत्यंत निर्मल जल से भरा हुआ एक-एक नवीन घड़ा भी रखवा दिया। इन सब बातों के पीछे लड्डुओं के खाने के लिए और पानी पीने के लिए समस्त राजकुमारों को महाराज उपश्रेणिक ने आज्ञा भी दी। कुमार श्रेणिक के अतिरिक्त जितने राजकुमार थे सबने उन लड्डुओं से भरे हुए पिटारे को एकदम हाथ में लेकर बिना विचारेही शीघ्र खोल डाला और अपनी भूख की शान्ति के लिए लड्ड खाना प्रारम्भ कर दिया तथा प्यास लगने पर घड़ों के मुंह खोलकर उनसे पानी पिया। परन्तु कुमार श्रेणिक जो उन सब कुमारों में अत्यंत बुद्धिमान था चट महाराज के मन का तात्पर्य समझ पिटारे के मुख को बिना उघाड़े ही उसको लेकर इधरउधर हिलाने लगा और इस प्रकार उस पिटारे से निकले हुए चूर्ण को खाकर उसने अपनी क्षुधा की शान्ति की तथा जहाँ पर घड़ा रखा था वहाँ जो जल घड़े से बाहर इकट्ठा हुआ था उसी से अपनी प्यास बुझाई किंतु घड़े के मुख को खोलकर पानी नहीं पिया। अनंतर महाराज उपश्रेणिक ने समस्त राजकुमारों को अपने-अपने घर जाने के लिए आज्ञा दी। परीक्षा से राज्य की प्राप्ति के सब चिन्ह धीर-वीर भाग्यशाली कुमार श्रेणिक में देखकर महाराज उपश्रेणिक अपने मन में इस प्रकार चिंता करने लगे कि ज्योतिषी के बतलाये निमित्तों से कुमार श्रेणिक सर्वथा राज्य के योग्य सिद्ध हो चुका अब मैं किस रीति से चलाती पुत्र को राज्य दूं ? मैं पहले यह वचन दे चुका हूँ कि यदि राज्य दूंगा तो चलाती को ही दूंगा, किंतु ज्योतिषी द्वारा बतलाये हुए निमित्तों से राजकुमार श्रेणिक ही उपयुक्त ठहरता है अब मैं पहले दिये हुए अपने वचन की कैसे रक्षा करूँ ?
हां, यह बात बिलकुल ठीक है कि जिसका भाग्य बलवान होता है उसको राज्य मिलता है इसमें जरा भी सन्देह नहीं। इस प्रकार भयंकर चिन्ता-सागर में गोता लगाते हुए महाराज उपश्रेणिक ने अत्यन्त बुद्धिमान सुमति तथा मतिसागर नाम के मंत्रियों को तथा इनसे अतिरिक्त अन्य मंत्रियों को भी बुलाया और उनसे इस प्रकार अपने मन का भाव कहा
हे मंत्रियो! आप सब लोग अत्यंत बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ हैं। मेरे मन में एक बड़ी भारी चिता है जिससे मेरा सारा शरीर सूखा जाता है उस चिंता की निवृत्ति किस रीति से होगी इस पर विचार करो॥५८-७०॥
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