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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
सार्द्रतृणं च संप्राप्य संतुष्टास्ते कृतोद्यमाः । तृणोत्थं जलमादातुं स्थिता भिन्ने प्रदेशके ।। ३३ ।। पानीयं स्वकरेणैव तृणोत्थं नूतने घटे । क्षिपंत्यादाय शीघ्र ते तच्छुष्यति घटोदरे ।। ३४ ॥ आघणं ते जलेनापि व्याकुलीभूतमानसाः । तत्र स्थिता न संपूत्तिमेकस्यापि घटोऽभजत् ।। ३५ ॥ राज्ञो निरूप्य सर्वस्वं चलातीपुत्रकादयः । अधोवक्त्रा गृहं जग्मुरसिद्धोक्तस्वकार्यकाः ।। ३६ ।। श्रेणिकोऽपि स्वयं बुद्धयागमत्सार्द्रतृणाकुलं ।। तत्र सासुचेलेन गृहीत्वातॄणजं जलम् ॥ ३७ ।। क्षणात्संभृत्य कुंभं तं तृणजेन जलेन च । आगत्य नृपतेः कुंभं ददर्श जलसंभृतम् ॥ ३८ ॥ महांतं तं परिज्ञाय राजा चितापरोऽभवत् ।
राज्यभोक्ताऽयमेवात्र मम वाक्यस्य का गतिः ।। ३६ ।। इस प्रकार कुछ समय तक विचार करते-करते महाराज ने दूसरे निमित्त की परीक्षा करने के लिए अपने पुत्रों को बुलाया और कहा-हे पुत्रो ! तुम सब आज फिर मेरी बात को सुनो, सब लोग एक-एक नवीन घड़ा लो और उसको अपनी चतुरता से ओस के जल से मुंह तक भरकर लाओ। महाराज का वचन सुनते ही वे समस्त राजकुमार सवेरा होते ही बड़े उत्साह के साथ ओस के जल से घड़ों को भरने के लिए अनेक प्रकार के तृणयुक्त जगहों पर गये और वहाँ पर ओस के जल से भीगे तृणों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो बड़े प्रयत्न से तृणों के जल को ग्रहण करने के लिए अलग-अलग बैठ गये। जिस समय वे उस ओस के पानी को नवीन घड़े में भरते थे घड़े के भीतर जाते ही क्षणभर में वह ओस का पानी सूख जाता था। इस तरह ओस के जल से घड़ा भरने के लिए उन्होंने यथाशक्ति बहुत परिश्रम किया और भाँति-भाँति के प्रयत्न किये किन्तु उनमें से एक भी कुमार घड़ा को भर न सका किन्तु एकदम घबराकर सब-के-सब कुमार अपनेअपने स्थानों में चुपचाप बैठ गये। बहुत समय बैठने पर जब उन्होंने यह बात निश्चय समझ ली कि घड़े नहीं भरे जा सकते तब चलाती आदि सब राजकुमार महाराज की इस परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो लज्जा के मारे मुख नीचे किये हुए अपने-अपने घरों को चले गये। परन्तु अत्यन्त बुद्धिमान कुमार श्रेणिक महाराज की आज्ञा पालन करने के लिए जिस प्रदेश में ओस के जल से भीगे हुए बहुत तृण थे, गया और उन तृणों पर उसने एक कपड़ा डाल दिया। जिस समय वह कपड़ा ओस के जल से भीग गया तब उस भीगे कपड़े को निचोड़-निचोड़कर उस जल से घड़े को अच्छी तरह भरकर वह अपने घर ले आया और ओस के जल से भरे हुए उस घड़े को महाराज उपश्रेणिक के सामने रख दिया। महाराज ने जिस समय कुमार श्रेणिक द्वारा लाये ओस के जल
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