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श्रेणिक पुराणम्
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इस प्रकार नैमित्तिक के बताये हुए पांच निमित्तों को सुनकर महाराज ने उस नैमित्तिक को विदा किया और ज्योतिषी के बतलाये हुए उन निमित्तों से कुमारों की परीक्षा करने के लिए स्वयं ऐसा विचार करने लगे कि आश्चर्य की बात है कि राज्य तो मैंने चलातकी को देने के लिए दृढ़ संकल्प कर लिया है लेकिन अब नहीं जान सकता कि इन निमित्तों से परीक्षा करने पर राज्य का कोन भोगनेवाला ठहरेगा? ॥२३-२५।।
अन्यदा च समाहूता: सभामध्ये शुभाशयाः । सर्वे सुता: समागत्य स्थिताः प्रणतमौलयः ॥ २६ ॥ राज्ञोक्तं भो सुताः सर्वेगृहीध्वं शर्कराघटं ।
एकैकमिति वाक्यं हि श्रुत्वा तत्करणोत्सुकाः ।। २७ ।। कुछ समय बीत जाने पर महाराज ने एक समय अपने समस्त पुत्रों को सभा में बुलाया और सरल स्वभाव से वे लोग महाराज की आज्ञा के अनुसार सभा में आकर अपने-अपने स्थानों पर बैठ गये। उनको भलीभाँति बैठे हुए देखकर महाराज ने कहा-हे पुत्रो ! मैं जो कहता हूँ सुनो-आप लोग एक-एक शक्कर का घड़ा लेकर सिंह-द्वार की ओर जाइये ॥२६-२७॥
राजाज्ञया ततः सर्वे गृहीत्वा स्वकरे घटं । सिंहद्वारे क्षणं स्थित्वा गताः स्वं स्वं गृहं प्रति ॥ २८ ॥ श्रेणिकोन्येन संग्राह्य सेवकेन घटं. शुभं । सिंहद्वारेऽगमद्धीमांल्लीलया स्वगृहं प्रति ।। २६ ।। श्रेणिकोऽयं शुभायतो राज्ययोग्यो भविष्यति ।।
कथं दास्यामि राज्यं मे श्री चलातीस्वसूनवे ॥ ३०॥ महाराज के इस वचन को सुनकर महाराज की आज्ञा के पालन करनेवाले सब कुमार महाराज की आज्ञा से एक-एक शक्कर के घड़े को स्वयं लेकर सिंह-द्वार की ओर गये तथा थोड़ी देर वहाँ पर ठहरकर अपने अपने घरों को चले आये पर चतुर कुमार श्रेणिक किसी अन्य सेवक के सिर पर घड़े को रखवाकर सिंह-द्वार में गया तथा पीछे खेलता हुआ अपने घर को चला गया जब महाराज उपश्रेणिक ने यह बात सुनी तब वे चकित होकर रह गये और अपने मन में विचार करने लगे निःसंदेह भाग्यशाली श्रेणिक कुमार ही राज्य का अधिकारी होगा अब मैं अपने राज्य को चलाती कुमार के लिए कैसे दे सकूँगा? ॥२८-३०॥
अन्यदाहूय स सूनून वरप्रीतिकरान् परान् । बभाषे नृपतिः पुत्राः शृणुध्वं वचनं मम ॥ ३१॥ ततः प्रातर्गताः सर्वे भिन्ना भिन्नास्तृणाकुले । प्रदेशे घटमादाय सोत्सुकास्ते जलकृते ॥ ३२ ॥
८.३०॥
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