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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
अयोध्या का परकोटा मनोहर किरणों से व्याप्त, मुक्ताफल और भी अनेक रत्नों से निर्माण किया स्वर्ग की समता को धारण करेगा। और घर स्वर्ग घरों के साथ स्पर्द्धा करेंगे । अयोध्या के घर विमानों को जीतेंगे। मनुष्य देवों को, स्त्रियाँ देवांगनाओं को, राजा इन्द्रों को और वृक्ष कल्पवृक्षों को नीचा दिखायेंगे। अयोध्या में रहनेवाली कामिनियों के मुख से चन्द्रमंडल जीता जायेगा । नखों से तारागण, मनोहर नेत्रों से कमल और गमन से हाथी पराजित होंगे। अयोध्यापुरी के महलों पर लगी ध्वजा चन्द्रमण्डल का स्पर्श करेगी। अयोध्यापुरी का विशेष कहाँ तक वर्णन किया जाये ? जिनेन्द्र के रहने के लिए कुबेर इन्द्र की आज्ञा से उसे एक ही बनावेगा । और वहाँ अनेक राजाओं से पूजित चौतर्फा अपनी कीर्ति प्रसार करने वाले अतिशय पुष्यवान, चतुर, सुन्दर और सात हाथ शरीर के धारक कुल कर महापद्म महापद्म की प्रिय भार्या सुन्दरी होगी । सुन्दरी अतिशय शरीर की धारक, पद्म के समान सुन्दर, रति के समान होगी । उसके केश अतिशय दैदीप्यमान और उत्तम होंगे। मुख कमल की सुगन्धि से उसके मुख पर भोंरे गिरेंगे। और उसके सिर पर रत्न जड़ित दैदीप्यमान चूड़ामणि शोभित होगा । अतिशय तिलक से युक्त उसका भाल अतिशय शोभा को धारण करेगा और वह ऐसा मालूम पड़ेगा मानो त्रिलोक की स्त्रियों के विजय के लिए विधाता ने एक नवीन यंत्र रचा हो । कानों तक विस्तत विशाल और रक्त उसके नेत्र होंगे । और वे पद्मदल की शोभा धारण करेंगे ।। १- १८ ।।
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मध्ये भ्रुवोर्भाति च येन यस्या
उंकार मंत्रो लिखितो विधात्रा | जगद्वशायापरथा कथं स्यान्
नरो वशी तामवलोक्य तूर्णं ॥ १६ ॥
दंतकेसरमनौपमं वरं ।
परमोष्टपर्णकलितं नतभ्रु वः ॥ २० ॥
भाति वक्त्रगृहकाष्टतां गतं ।
आस्यपद्द्मभवभाति सुंदरं
नासिकाविशमनोहरं
चारुकंबुललितं त्रिरेखितं
कोकिलध्वनि समाजसुंदरं
सुभ्र ुवो वटुविराजितं परं ॥ २१ ॥
वक्षःस्थले भाति विशालहारो
मुक्ताफलाढ्यो वररत्नभासी ।
रक्षाकृते नाग इव स्तनस्य
यस्या मनोभूवर सेविधेश्च ॥ २२ ॥
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