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________________ श्रेणिक पुराणम् सुंदरीत्यभिधया वरमूर्ति तार मार दयिते वसुभावा रंगनाललित चारुशरीरा । तस्य चित्तवर पद्मयूखा ।। १५ ।। यस्या विरेजुः सरसाः कचाश्च मूर्ध्नि प्रभाढ्या भ्रमराः सुगंधात् । संसेवितुं वक्त्रमहोत्पलस्य Jain Education International स्थिताश्च चूड़ामणि रत्नदीप्ताः ॥ १६ ॥ यस्या विशालं वरभालपट्ट संराजते सत्तिलकायितं च । त्रैलोक्य नारी विजयाय बद्धं पत्रं विधात्रेव वराक्षराढ्यं ।। १७ ।। आकर्णविस्तारि सुनेत्रयुग्मं रक्तं सुक्रोपादिवमार्गरोधात् । श्रुत्योरलक्षा खिलकूपकृत्योः क्रीड़ाकृते पद्मदलं विधातुः ॥ १८ ॥ समस्त पदार्थों के प्रकाश करने में सूर्य के समान भावी तीर्थंकर श्री पद्मनाभ भगवान को नमस्कार कर स्वकल्याण सिद्धयर्थं उन्हीं भगवान के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित पाँच कल्याणों का वर्णन करता हूँ । ३४६ उत्सर्पिणी काल के एक हजार वर्ष बाद अतिशय चतुर उत्तम ज्ञान के धारक चौदह कुलकर 'मनु' होंगे । और वे अपने बुद्धिबल से प्रजा को शुभ कार्य में लगायेंगे। उन सब में शुभकर्ता, अनेक देवों से पूजित, अनेक गुणों के आकर, अपनी किरणों से समस्त अन्धकार नाश करने वाले गंभीर, अनेक आभरणों से शोभित और अतिशय प्रसिद्ध तीर्थंकर पद्मनाभ के पिता अन्तिमकुलकर महापद्म होंगे। कुलकर महापद्म मुख से चन्द्रमा को, नेत्रों से ताराओं को, वक्षःस्थल से शिला को, दाँतों से कुन्दपुष्प को और बाहुयुग्म से शेषनाग को जीतेंगे। अनेक राजाओं से वंदित राजा महापद्म द्म में उत्तमोत्तम गुण, रूप, समस्त कलाएँ, शील, यश आदि होंगे । महापद्म अपने उत्तम बुद्धिबल से जीवेंगे। मनोहर रूप से कामदेव की तुलना करेंगे । निरन्तर विभूति के प्रभाव से देवतुल्य और अपने शरीर की कांति से सूर्य के समान होंगे । महापद्म के रहने के लिए इन्द्र की आज्ञा से कुबेर अनेक रत्नों से जड़ित, मनोहर भूमियों से शोभित, अयोध्या नगरी का निर्माण करेगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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