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________________ २२ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् न लगा। किन्तु णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं' इत्यादि महामन्त्र को ध्यान करते हुए महाराज उपश्रेणिक अंधकारमय एवं दुःखों के देनेवाले उसी गड्ढे में पड़े हुए अनेक प्रकार के कष्टों को भोगते रहे ।।३५-३८॥ तत्र पल्ली शुभा-चास्ति तुच्छवासा मनोहरा। तत्पतिर्यमदंडाख्यः क्षत्रियो भिल्लनायकः ॥ ३६॥ बिद्युन्मती शुभा राज्ञी रूप सौभाग्य संश्रिता । तिलकादिवती पुत्री तयोश्चंद्राननाऽपरा ॥ ४० ॥ जिस वन के भीतर भयंकर गड्ढे में महाराज उपश्रेणिक पड़े थे उसी वन में एक अत्यन्त मनोहर भीलों की पल्ली थी। उस पल्ली का स्वामी, समस्त भीलों का अधिपति क्षत्रिय यमदंड नाम का राजा था। उसकी विद्युन्मती पटरानी अतिशय मनोहर और रूप एवं सौभाग्य की खानि थी। इन दोनों राजा-रानी के चन्द्रमा के समान उत्तम मुखवाली तिलकवती नाम की एक कन्या थी॥३६-४०॥ यावन्मागधनाथोऽसौ स्थितोशर्मप्रपूरितः । पल्लीपतिः समायातस्तावत्क्रीड़ा कृतेऽथ च ।। ४१ ॥ दृष्टवा तत्र स्थितं राजगृहनाथं सविस्मितः । कोऽयं कथं दशां दुष्टामिमां प्राप्तः प्रभुः परः ।। ४२ ।। चितयन्निति स दूरादागत्योत्तीर्य घोटकात् । अनमत्यादयोयुग्म मतिष्ठत्तस्य संनिधौ ॥ ४३ ॥ पप्रच्छेति प्रभो केनानीतस्त्वं दुष्टवैरिणा। अवस्थामीदृशीं प्राप्तः कथं मगधनायक ॥ ४४ ।। तत: प्राख्यत्स भूपालो यमदंड प्रति प्रियं । वचः शृणु-च भो मित्र वृत्तांतं विस्मयप्रदम् ।। ४५ ।। क्रोड़ा करने का अत्यन्त प्रेमी राजा यमदंड इधर-उधर अनेक प्रकार की क्रीड़ाओं को करता हुआ उसी गड्ढे के पास आया जिस गड्ढे में महाराज उपश्रेणिक पड़े नाना प्रकार के कष्टों को भोग रहे थे। गड्ढे के अत्यन्त समीप आकर जब महाराज उपश्रेणिक को उसने भयंकर गड्ढे में पड़ा देखा तो वह आश्चर्य से अपने मन में यह विचार करने लगा कि यह कौन है ? वह कैसे इस दशा को प्राप्त हुआ? और इसे किसने इस प्रकार का भयंकर कष्ट दिया है ? कुछ समय इसी प्रकार विचार करते-करते जब उसको यह बात मालूम हो गई कि ये राजगृह नगर के स्वामी महाराज उपश्रेणिक हैं तो झट वह अपने घोड़े पर से उतर पड़ा और अत्यन्त विनय से उसने महाराज उपश्रेणिक के दोनों चरणों को नमस्कार किया और विनयपूर्वक उनके पास बैठकर यह पूछने लगा कि हे प्रभो किस दूष्ट बैरी ने आपको इस भयंकर गडढे में लाकर गिरा दिया? और हे मगधेश ऐसी भयंकर दशा को आप किस कारण से प्राप्त हुए? कृपा कर यह समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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