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________________ श्रेणिक पुराणम् अहो वैरं न कर्तव्यं दुर्बलेऽपि मदोद्धतः । प्रांते दुःखप्रदंज्ञेयमहो व्यसनसंततिः ॥ ३२॥ अतिशय बलवान पुरुषों को भी दुर्बल मनुष्यों के साथ कदापि बैर नहीं करना चाहिए क्योंकि दुर्बल के साथ भी किया हुआ बैर मनुष्यों को इस संसार में अनेक प्रकार का अचिंतनीय कष्ट देता है ॥३२॥ क्व राजा मगधाधीश: क्वाटवी दु:खदायिका । क्व गर्त्तः क्व पुरं रम्यं वरस्य फलमीदृशं ॥ ३३ ॥ इति मत्त्वा जनस्त्याज्यं वैरं दुःखप्रदं परं । इहामुत्र भवे पापा प्रीतिदं श्वभ्रदायकं ॥ ३४ ॥ अहा ! दुःखों का समूह कैसा आश्चर्य का करनेवाला है। देखो? कहाँ तो मगध देश का स्वामी राजा उपश्रेणिक ? और कहाँ अनेक प्रकार के भयंकर दुःखों का देनेवाला महान वन ? तथा कहाँ अतिशय मनोहर राजगृह नगर? कहाँ अन्धकारमय भयंकर गड्ढा? क्या किया जाय बैर का फल ही ऐसा है, इसलिए उत्तम पुरुषों को चाहिए कि वे उभय लोक में दुःख देनेवाले इस परम बैरी बैर-विरोध को अपने पास कदापि न फटकने दे ॥३३-३४॥ सेनायामथ देशेऽपि नगरे सज्जने जने । हाहारवस्तदा जात: शोकचितालिलि गित: ॥ ३५॥ श्रुत्वांतःपुरनार्योऽपि व्यधुर्दुःखं विमानसाः । केश हारस्वशृंगार त्रोटनं च पुनः पुनः ।। ३६ ॥ चतुरंग बलेनापि सपुत्रेण पुनः पुनः । यत्नतः प्रेक्ष्यमाणोऽपि नो दृष्टो नरनायकः ॥ ३७॥ अथ स्मरन्महामंत्रमपराजितनामकं । स्थितोऽतः खिद्यमानोऽसौ सार्ने गर्ते व्यथाश्रितः ॥ ३८ ॥ जब लोगों ने महाराज उपश्रेणिक के लापता होने का समाचार सुना तो सेना में, देश में, अनेक जनों से सर्वथा पूर्ण राजगृह नगर में एवं अन्यान्य नगरों में भी शोक और चिन्ता छा गई -हाकार मच गया। रनिवास की समस्त रानियाँ य समाचार सुनते ही मच्छित हो गई और महाराज के वियोग में एकदम करुणाजनक रुदन करने लगीं। जितने केशविन्यास हार आदिक शृंगार थे उन सबको उन्होंने तोड़कर अलग फेंक दिया। चतुरंगिनी सेना ने और महाराज उपश्रेणिक के पुत्रों ने महाराज के ढूंढ़ने के लिए अनेक प्रयत्न किये किंतु कहीं पर भी उनका पता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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