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________________ ३०० श्रीशभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् दयासिन्धो! जो मनुष्य आपके चरण-रूपी जहाज में स्थित है चाहे वह वड़वानल से व्याप्त, मगर आदि जीवों से पूर्ण समुद्र में ही क्यों न जा पड़े वात की बात में तैरकर पार पर आ जाता है। जिनेन्द्र ! जिन मनुष्यों ने आपका नाम रूपी कवच धारण कर लिया है वे अनेक भाले, बड़े-बड़े हाथियों के चीत्कारों से परिपूर्ण, भयंकर भी संग्राम में देखते-देखते विजय पा लेते हैं। कोढ़ जलोदर आदि भयंकर रोगों से पीड़ित भी मनुष्य आपके नामरूपी परमौषधि की कृपा से शीघ्र ही नीरोग हो जाते हैं । गुणाकर ! जिनका अंग संकलों से जकड़ा हआ है। हाथ-पैरों में बेड़ियाँ पड़ी हैं यदि ऐसे मनुष्यों के पास आपका नामरूपी अद्भुत खंग मौजूद है तो वे शीघ्र ही बन्धन रहित हो जाते हैं। प्रभो ! अनादि काल से संसार-रूपी घर में मग्न अनेक दुःखों का सामना करने वाले जीवों के यदि शरण हैं तो तीनों लोक में आप ही हैं। प्रभो ? कथंचित् गणनातीत मैं आपके गुणों की गणना करता हूँ। कृपानाथ ! गम्भीर गणनातीत प्रसन्न परम अतीत इतने गुण ही आप में हैं इनसे अधिक आप में गुण नहीं ऐसी बात नहीं है किन्तु आप में अनंतानन्त गुण भरे हुए हैं। इसलिए हे कल्याण रूप जिनेन्द्र ! आपके लिए नमस्कार है। महामुने! परम योगीश्वर वीर भगवान ! आप मेरी रक्षा करें॥१००-११९।। इति नुत्वा वरैर्वाक्यभगवंतं जिनेश्वरम् । प्रणिपत्य गौतमादींश्च गणाधीशान्नराधिपः ॥१२०॥ उपाविशन्नरे कोष्ठे धर्मामृतपिपासया । कुड्मलीकृत हस्ताब्जः पप्रच्छ श्रेयसंनृपः ॥१२१।। व्याजहार तदा वीरः शुभ सर्वांगभाषया । ताल्वोष्ठ वक्त्रवेष्टाभिर्मुक्तस्तं प्रतिसन्दृष ।।१२२।। राजन्भव्योत्तमाधीश शृणुतत्वानि पूर्वतः । सम्यग्दर्शन हेतूनि मोक्षसद्धामसत्पदम् ।। १२३।। जीवेतराश्रवा बंधः संवरो निर्जरा तथा । मोक्षश्चेति सुतत्त्वानि वेदनीयानि सब्दुधैः ।।१२४।। स्थावरेतरभेदेन तत्र जीवो द्विधा मतः । स्थावर: पंचधा प्रोक्तोम्वप्तेजोवायुशाखिनः ॥१२५।। चतः पर्याप्तिप्राणैश्चैकाक्षत्वं तत्र वर्तते । सूक्ष्मेतरविभेदेन पंचते ते द्विधा मताः ।।१२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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