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________________ २६० श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् कर घूमूं किंतु यह इच्छा पूर्ण होनी दुःसाध्य है। इसलिए मेरा शरीर दिनों-दिन क्षीण होता चला जाता है। रानी की ऐसी कठिन इच्छा सुनी तो महाराज अचम्भे में पड़ गये। इस इच्छा को पूर्ण करने का उन्हें कोई उपाय न सूझा इसलिए वे मौन धारण कर निश्चेष्ट बैठ गये। अभय कुमार ने महाराज की यह दशा देखी तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ वे महाराज के सामने इस प्रकार विनय से पूछने लगे। पूज्य पिताजी ! मैं आपको प्रबल चिन्ता से आतुर देख रहा हूँ। मुझे नहीं मालूम पड़ता अकारण आप क्यों चिन्ता कर रहे हैं ? कृपया चिन्ता का कारण मुझे भी बतावें । पुत्र अभय कुमार के ऐसे वचन सुन के महाराज श्रेणिक ने सारी आत्म कहानी कुमार को कह सुनाई और चिन्ता दूर करने का कोई उपाय न समझ वे अपना दुःख भी प्रकट करने लगे। अभय कुमार अति बुद्धिमान थे ज्यों ही उन्होंने पिताजी के मुख से चिन्ता का कारण सुना शीघ्र ही सन्तोषप्रद वचनों में उन्होंने कहा-पूज्यवर ! यह बात क्या कठिन है मैं अभी इस चिंता के हटाने का उपाय सोचता हूँ आप अपने चित्त को मलीन न करें। तथा चिन्ता दूर करने का उपाय भी सोचने लगे। कुछ समय सोचने पर उन्हें यह बात मालूम हुई कि यह काम बिना किसी व्यंतर की कृपा से नहीं हो सकता इसलिए आधी रात के समय घर से निकले । व्यंतर की खोज में किसी श्मशान भूमि की ओर चल दिये। एवं वहाँ पहुँचकर किसी विशाल वट वृक्ष के नीचे इधर-उधर घूमने लगे। वह भयावह था। जगह-जगह वहाँ अजगर फुकार शब्द कर रहे थे, श्मशान उल्लुकों के फूत्कार शब्दों से व्याप्त था शृगालों के भयंकर शब्दों से मदोन्मत्त हाथियों से अनेक वृक्ष उजड़े पड़े थे। अद्ध-दाह मुर्दे और फटे घड़ों के समान उनके कपाल वहाँ जगह-जगह पड़े थे। मांसाहारी भयंकर जीवों के रौद्र शब्द क्षण-क्षण में सुनाई पड़ते थे। अनेक जगह वहाँ मुर्दे जल रहे थे। __ और चारों ओर उनका धुआँ फैला हुआ था। मांसलोलपी कुत्ते भी वहाँ जहाँ-तहाँ भयावह शब्द करते थे। चारों ओर वहाँ राख की ढेरियाँ पड़ी थीं। इसलिए मार्ग जानना भी कठिन पड़ जाता था। एवं चारों ओर वहाँ हड्डियाँ भी पड़ी थीं। बहुत काल अंधकार में इधर-उधर घूमने पर किसी वट वृक्ष के नीचे कुछ दीपक जलते हुए कुमार को दीख पड़े वह उसी वृक्ष की ओर झुक पड़ा और वृक्ष के नीचे आकर उसे धीर-वीर जयशील स्थिरचित्त चिरकाल से उद्विग्न एवं जिसके चारों ओर फूल रखे हुए हैं कोई उत्तम पुरुष दीख पड़ा। पुरुष को ऐसी दशापन्न देख कुमार ने पूछा ___भाई ! तू कौन है ? क्या तेरा नाम है ? कहाँ से तू यहाँ आया? तेरा निवास स्थान कहाँ हैं ? और तू यहाँ आकर क्या सिद्ध करना चाहता है ? कुमार के ऐसे वचन सुन उस पुरुष ने कहा www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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