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________________ द्वादशमः सर्गः नौमि तं जिन सद्धर्म सत्सिद्धांतभास्करम् । यस्य प्रसादतः प्राप्तं श्रेणिकेन सुखं परम् ॥ १ ॥ कुर्वतौ परमं धर्म भुक्तौ राज्यं च दंपती । गतं कालं न वित्तस्तौशर्माब्धिवशवत्तिनौ ॥ २ ॥ यजतौ जिनपादाब्जं ध्यायंतौ मुनिपुंगवम् । कृपाकृतितपापांगौ तिष्ठतस्तौ च दंपती ॥ ३ ॥ कदाचित्प्रथमं शास्त्रं त्रिषष्ठिस्मृतिगोचरं । अन्यदालोकसंस्थान व्याख्यानं शृणुतस्तकौ ॥ ४ ॥ अष्टोत्तरशतभिन्नमहिंसावतंमुत्तमम् । तथ्यवाचादिभेदं वा कर्णयंत निजेच्छया ॥ ५ ॥ द्रवति द्रोष्यति द्रव्यमदुद्रवदिति स्फुटम् । सद्भेदं सप्तभंगाढ्यं तौ च शुश्रवतु: सदा ।। ६ ।। अपूर्वपाठपारीणौ धुरिणौ धर्मसंपदः । विपदः प्रतिकूलौ तौ रेमाते रतिमार वत् ।। ७ ॥ दशांगभोगभोगाढ्यौ दााढ्यजनसेवितौ । रतिसंतृप्तसर्वांगौ शचीद्राविवरेजतुः ॥ ८ ॥ सुषेणचरदेवोऽथ तस्या ब्रूणेऽभवत्सुतः । समैधे जठरे तस्याः क्रमेण गजसद्गतेः ॥ ६ ॥ आपांडवदना क्षीणविग्रहा कलभाषिणी। ईषन्निद्रा समालभ्या जज्ञे सा भ्र णभावतः ।। १० ।। जिस परमोत्तम धर्म की कृपा से मगध देश के स्वामी महाराज श्रेणिक को अनुपम सुख मिला। पापरूपी अन्धकार को सर्वथा नाश करनेवाले उस परम धर्म के लिए नमस्कार है। महाराज श्रेणिक को जैन धर्म में जो सन्देह थे, सो सब हट गये थे इसलिए भली प्रकार जैन धर्म के पालक राज्य-सम्बन्धी अनेक भोग भोगने वाले शुभ मार्ग पर आरूढ़ राजा श्रेणिक www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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