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________________ २६० श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् श्रेष्ठिन्सुकृतहिंसकः । अबी भणन्मुनिर्वाचः सत्कृतं यो न जानाति भविताऽशर्मभाजनं ॥ २२४ ॥ उपकारक हंतार एकतो वधकारकाः । प्रोच्यते ते समानान मेरुसर्षप्रवद्बुधैः ।।२२५।। आख्यानकं मया कथ्यमानं शृणु वणिग्वर । चंपापुरी प्रसिद्धार्था स्वः पुरीव सुशोभना ॥ २२६ ॥ रूपादिमदमोदिनी । पण्यस्त्री देवदत्ताख्या तत्रास्ते सा कदाचिच्च शुकमेकमपोषयत् ।।२२७॥ एकदा रविवारे सा निधाय वर्त्तके सुराम् । मध्ये धामं प्रविष्टा च पक्वमालूरसुस्तनी ॥२२८ ॥ तदा काचित्प्रक्रुद्धांत: कन्यैत्य गरलं लघु । विक्षिप्य सा तिरोजाता तद्दष्टं शुकपक्षिणा ॥ २२६ ॥ देवदत्ता समागत्य ततस्तं तदऽजान ही ? यावत्पास्यति तद्भीत्या न पीत्सति कथंचन ॥ २३० ॥ पायितं च तया तावद्दिष्टांतोद्भ तसाध्वसात् शुकोऽकरत्तदा दुष्टा कोपाच्च तममीरत् ।।२३१|| किसी समय किसी गंगा किनारे एक विश्वभूति नाम का तपस्वी रहता था । कदाचित् एक हाथी का बच्चा नदी के प्रवाह में बहा चला जा रहा था । तपस्वी की अचानक ही उस पर दृष्टि पड़ गई। दयावश उसने शीघ्र ही उस हाथी के बच्चे को पकड़ लिया। वह बच्चा शुभलक्षणयुक्त था इसलिये वह तपस्वी उत्तमोत्तम फल आदि खिलाकर उसका पोषण करने लगा और चन्द रोज में ही वह बच्चा एक विशाल हाथी बन गया । Jain Education International कदाचित् किसी राजा की दृष्टि उस हाथी पर पड़ी उसे शुभलक्षण युक्त देख राजा ने उसे खरीद लिया और अपने महल में ले जाकर सिखाने के लिए किसी महावत के सुपुर्द कर दिया । राजा की आज्ञानुसार महावत उसे सिखाने लगा। जब वह सीखने में टालमटोल करता था तब महावत उसे मार-मार कर अंकुश से वश में करता था । इस प्रकार कुछ समय तो वह हाथी वहाँ रहा। जब उसे अंकुश बहुत दुःख देने लगा तो वह भागकर गंगा के किनारे उसी तपस्वी के पास आ गया । ज्योंही तपस्वी ने उसे देखा तो उसने भी उसे नहीं रखा मार-पीटकर वहाँ से भगा दिया। तपस्वी का ऐसा बर्ताव देख हाथी को क्रोध For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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