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________________ २५८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् थी। वसुकांता अतिशय मनोहरा चन्द्रवदना मृगनयनी कृशांगी एवं पूर्ण चन्द्रानना थी। राजा विश्वसेन की रानी वसुकांता से उत्पन्न एक पुत्र जो कि शुभ लक्षणों का धारक सदा, धन वृद्धि का इच्छुक, वीर, एवं सर्वोत्कृष्ट वसुदत्त था। राजा विश्वसेन ने वसुदत्त को योग्य समझ राज्यभार उसे ही दे दिया था। आनन्दपूर्वक भोग भोगते वे अपने अन्तःपुर में रहते थे। कदाचित् वे आनंद में बैठे थे उस समय कोई एक सार्थवाह मनुष्य उनके पास आया। उसने भक्तिपूर्वक उन्हें नमस्कार किया एवं अपनी भक्ति प्रकट करने के लिए एक आम की गुठली उनको भेंट की। राजा विश्वसेन ने गुठली तो ले ली किंतु वे उसकी परीक्षा न कर सके इसलिए उन्होंने शीघ्र ही सार्थवाह से पूछा कहो भाई यह क्या चीज है मैं इसको पहचान न सका । राजा के ऐसे वचन सुन सार्थवाह ने कहा कृपानाथ ! समस्त रोगों के नाश करने वाले आम्रफल का यह बीज है। इस देश में यह फल होता नहीं इसलिए यह अपूर्व पदार्थ जान मैंने आपकी सेवा में आकर भेंट किया है। सार्थवाह के ऐसे विनय वचनों से राजा विश्वसेन अति प्रसन्न हुए। उनका प्रेम रानी वसुकांता में अधिक था इसलिए उन्होंने यह समझ कि बिना रानी के मेरा नीरोग होना किस काम का ? चट रानी को बीज दे दिया। रानी का प्रेम पुत्र वसुदत्त पर अधिक था इसलिए उसने उठा वसुदत्त को दे दिया। जब वह आम का बीज वसुदत्त के हाथ में आया तो वे उसे जान न सके और उनका प्रेम पिता पर अधिक था इसलिए उन्होंने शीघ्र ही वह बीज पिता को दे दिया और विनय से यह प्रार्थना की कि पूज्य पिता ! यह क्या चीज है कृपाकर मुझे बताएँ ? वसुदत्त के ऐसे वचन सुन राजा विश्वसेन ने कहा प्यारे पुत्र! अमृतफल आम पैदा करने वाला यह आम का बीज है। इससे जो फल उत्पन्न होता है उससे समस्त रोग शान्त हो जाते हैं। यह फल हमें सार्थवाह ने भेंट किया है तथा ऐसा कहते-कहते उन्होंने शीघ्र ही किसी चतुर माली को बुलाया और स्त्री-पुत्र आदि के नीरोगपने की आशा से किसी उत्तम क्षेत्र में बोने के लिए उसे शीघ्र ही आज्ञा दे दी। राजा की आज्ञानुसार माली ने उसे किसी उत्तम क्षेत्र में बो दिया। प्रतिदिन स्वच्छ जल सींचना भी प्रारम्भ कर दिया। कुछ दिन बाद माली का परिश्रम सफल हो गया। वह वृक्ष उत्तमोत्तम फलों से लदबदा गया एवं वह प्रति दिन माली को आनंद देने लगा। किसी समय एक गृद्ध पक्षी आकाश मार्ग से किसी एक जहरीले सर्प को मुख में दबाये चला आ रहा था। भाग्यवश एक फल पर सर्प की विष बूंद गिर गई। विष की गर्मी से वह फल भी जल्दी पक गया। माली ने आनंदित हो फल तोड़ लिया और उसे राजा की सभा में जाकर भेंट कर दिया। राजा विश्वसेन को फल देख परमानंद हुआ। उन्होंने माली को उचित पारि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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