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________________ २४८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् मेरी माँ अधिक दुःख मानने लगी। मेरे मिलाप से मेरा समस्त बंधुवर्ग अति प्रसन्न हुआ। एवं कुछ दिन बाद मेरा भाई धनदेव मुझे यहाँ मेरे पति के घर पहुँचा गया। प्रिय भाई ! जब से मैं यहाँ आई हूँ तब से मैंने ज़रा-ज़रा-सी बात पर क्रोध करना छोड़ दिया। मैं क्रोध का भयंकर फल चख चुकी हूँ इसलिए और भी मैं क्रोध की मात्रा दिनोंदिन कम करती जाती हूँ। आप निश्चय समझिए यह धर्मरूपी वृक्ष सम्यग्दर्शनरूपी जड़ का धारक, शास्त्ररूपी पीड़ करयुक्त, दानरूपी शाखाओं से शोभित, अनेक प्रकार के गुणरूपी पत्तों से व्याप्त, कीतिरूपी पुष्पों से सुसज्जित, व्रतरूपी उत्तम आल-बाल से मनोहर, मोक्षरूपी फल का देनेवाला, क्षमारूपी जल से बढ़ा हुआ परम पवित्र है। यदि इसमें किसी रीति से क्रोधरूपी अग्नि प्रवेश कर जाय तो वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, तत्काल भस्म हो जाता है इसलिए जो मनुष्य अपना हित चाहते हैं उन्हें ऐसा भयंकर फल देनेवाला क्रोध सर्वथा छोड़ देना चाहिए। ब्राह्मणी तुंकारी के मुख से ऐसी कथा सुन सेठ जिनदत्त अति प्रसन्न हुआ। वह तुंकारी की बार-बार प्रशंसा करने लगा एवं प्रशंसा करता-करता कुछ समय बाद अपने घर आया। लाक्षामूल तेल एवं अन्यान्य औषधियों से जिनदत्त मेरी (मुनिराज की) परिचर्या करने लगा। कुछ दिन बाद मेरे रोग की शांति हुई। मुझे निरोग देख जिनदत्त को परम संतोष हुआ। मेरी निरोगता की खुशी में जिनदत्त आदि सेठों ने अति उत्सव मनाया। जहाँ-तहाँ जिनमंदिर में विधान होने लगे। एवं कानों को अति प्रिय उत्तमोत्तम बाजे भी बजने लगे ॥१२४-१४०।। प्रावृट् कालस्तदाऽयातो राजन्वर्षन्धनाघनम् । द्योतयन् विद्युतां वृदं गंभीर गर्जयन् ध्वनि ॥१४१।। सशाद्वला तदा भूमिर्जशेंबुबिंदुसंयुता। स्थूलमुक्ता फलाकीर्णा हरिन्मणिमया यथा ॥१४२॥ बभुस्तत्र शुभाः केकाः केकिनां तांडवात्मनां । लोकतृप्तिकेते तूर्णमाह्वयंत्य इवांबुदं ।।१४३।। हारायंते दिशां धाराबिंदु मुक्ताफलावहाः । विद्युत्संतप्तहेमाढ्या यत्र केका समाकुले ॥१४४।। अग्नीयंते पराधाराः कामिनीनां वियोगतः । पीड़ितानां वरे चित्ते ज्वलंत्यो मारदारुभिः ।।१४५।। अध्वगानां कृतालोपे पथि निर्गमनं कदा । धाराधरो न संदत्ते प्रियाविरह शंकिनां ।।१४६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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