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________________ श्रेणिक पुराणम् २४७ आलिंग्यस्नेहतो भ्राता मोचयित्वा यथा कथं । आदाय माँ समानीया जगाम निजपत्तनं ।।१३३।। दृष्ट्वा माँ च जनन्याद्या जहर्षुः क्षीणविग्रहां । धनदेवस्ततोऽदान्माँ मद्भत्रे सोमशर्मणे ॥१३४॥ अन्यदा मुनिमासाद्य गृहीतं कोपसव्रतं । मया सच्छीलरक्षायै वेदयंत्या च तत्फलं ॥१३॥ दृग्मल श्रुतसत्पीठो दानशारवो गुणच्छदः । यशः पुण्याव्रतावृत्तिर्मोक्षांतफलदायकः ॥१३६।। शमांबुद्धितो धर्म शाखी कोप धनंजयम् । आसाद्य वृद्धिमापन्नः क्षणेन भस्मसाद्भवेत् ।।१३७।। इति विज्ञाय भो भ्रातर्मयाऽग्राहि क्रु धावतं । श्रुत्वेति तां पुनः श्रेष्ठी प्रशंस्य स्वालयं गतः ॥१३८॥ ततः स लक्षमूलेन तैलेन मुनिपुंगवम् । निर्बणं कृतवान्भक्त्या नानागदविधानतः ।।१३।। स्वस्थीभूते मुनौ राजश्च स्ते परमोत्सवम् । गृहे गृहे जिनागारे तूर्यत्रिकसमुऋवम् ॥१४०।। जिस समय देवी मुझे अपने घर ले गई थी उस समय मेरे पास कोई वस्त्र न था इसलिए उस देवी ने मुझे एक ऐसा कम्बल जो अनेक जुओं, चींटी आदि जीवों से व्याप्त था, जगह-जगह उसमें रक्त, पीब, कीचड़ आदि लगी थी, दे दिया और मुझे वहीं रहने की आज्ञा दी। मैंने भी कम्बल ले लिया और प्रबल पायोदय से उस क्षेत्र में उत्पन्न कोदों आदि धान्यों को देखती हुई रहने लगी। इतने पर भी मेरे दुःखों की शांति न हुई प्रति पक्ष में वह देवी मेरे सिर के केशों का मोचन करती थी और अपने वस्त्र रँगने के लिए उससे रक्त निकाला करती थी। रक्त निकालते समय मेरे मस्तिष्क में पीड़ा होती थी इसलिए वह देवी उस पीड़ा को लाक्षामूल तेल लगाकर दूर करती। कदाचित् मेरा परम स्नेही भाई यौवन देव उज्जयिनी के राजा ने किसी कार्यवश बड़ी विभूति के साथ राजा पारासर के पास भेजा। वह अपना कार्य समाप्त कर उज्जयिनी लौट रहा था। मार्ग में कुछ समय के लिए जिस वन में मैं रहती थी, उसी वन में वह ठहर गया। और मुझ अभागिनी पर उसकी दृष्टि पड़ गई। ज्योंही उसने मुझे देखा बड़े स्नेह से मुझे अपने हृदय से लगाया। और बड़ी कठिनता से उस देवी के चंगुल से निकालकर मुझे उज्जयिनी ले गया। जिस समय मेरी माता आदि कुटुम्बियों ने मुझे देखा उन्हें परम दुःख हुआ। मेरे शरीर की दशा देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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