SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् उसके साथी परम दुष्ट थे । ज्योंही उन्होंने मुझे देखा देवांगना के समान परम सुंदरी जान वे भी कामबाण से व्याकुल हो गये । और बिना समझे बूझे मेरे शीलव्रत का खंडन करना प्रारंभ कर दिया। उस समय कोई वन रक्षिका देवी यह दृश्य देख रही थी इसलिए ज्योंही वे दुष्ट मेरे पास आवे डंडों से पीट के देवी ने उन्हें ठीक कर दिया । और वह मुझे अपने यहाँ ले गई। २४६ भाई जिनदत्त ! यद्यपि मैं अतिशय पापिनी थी तो भी मैं अपने शीलव्रत में दृढ़ थी इसलिए उस भयंकर समय में उस देवी ने मेरी रक्षा की। तुम निश्चय समझो जो मनुष्य अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहते हैं देव भी उनके दास बन जाते हैं और उनके समस्त दुःख एक ओर किनारा कर जाते हैं ।। ११६- १२३ ।। Jain Education International बलं । पापजनाकीर्णं श्रक्कर्दमसमाकुलं ।।१२४॥ स मां रसकुलस्यैव ददौ मूल्येन किल्विषात् ! स्थिताहं तत्र पश्यंती समुदीर्णं कुदादिकं ॥ १२५ ॥ भयत्रस्तः द्वीपं समानैषीत्कृमिरागादिकं पक्षे समे भ्रातः कुरुते शिरमोचनं । निः काश्य शोणितं तस्माद्वस्त्ररंजनहेतवे ॥ १२६॥ गृह्णातीत्थं करोत्येवं पक्षे पक्षे निरंतरम् । सहगाना तथाऽहं च स्थिता तत्र स्वकिल्विषात् ॥ १२७ ॥ तुंकार शब्दमासोढुमक्षमा तात मंदिरे | क्षंतुं शक्ता सिरामोचं विचित्रा कर्मणां गतिः ॥ १२८ ॥ पुनः सलक्षमूलाख्य तैलाभ्यंगेन देहजाम् । निवारयति मे पीड़ां नारकाभ्यां शुभातिगां ॥ १२६ ॥ अथ यो धनदेवाख्यो भ्राता संप्रीतिपूरितः । उज्जयिन्याधिपेनैव प्रेषितो भूतिमंडितः ॥ १३० ॥ ततो देशाधिपस्यैव पारासरसुभूपतेः । समीपं कार्य सिध्यर्थं संक्रमात्तत्र चागतः ।। १३१ ॥ पारासरं समासाद्य प्रणम्य कृतकार्यकः । यावद्बभूव तावन्मा मवैक्षत च दुःखिनीं ॥ १३२ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy