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श्रेणिक पुराणम्
ऐसा यह आर्यखण्ड नाना प्रकार के बड़े-बड़े देशों से व्याप्त, पुर और ग्रामों से सुशोभित, बहुत-से मुनियों से पूर्ण, और पुण्य की उत्पत्ति स्थान, अत्यन्त शोभायमान है ।।७२।।
इस आर्यखण्ड के मध्य में जिस प्रकार शरीर के मध्य भाग में नाभि होती है उसी प्रकार इस पृथ्वीतल के मध्य भाग में मगध नामक एक देश है जो अनेक जनों से सेवित, और विशेषतया भव्यजनों से सेवित है।।७। इस मगध देश में धन-धान्य और गुणों के स्थान मनुष्यों से व्याप्त, प्रकट रीति से सम्पत्ति के धारी, अनेक ग्राम पास-पास बसे हुए हैं।७४॥
इस मगध देश में, फल की इच्छा करनेवाले मनुष्यों को उत्तमोत्तम फलों को देनेवाले उत्कृष्ट वृक्ष, कल्पवृक्षों की शोभा को धारण करते हैं ॥७५।। उस देश में वहाँ के मनुष्य, पके हुए धान्यों के खेतों में गिरते हुए सूवों को कल्पवृक्ष के फलों के समान जानते हैं ॥७६।। वहाँ अत्यन्त निर्मल जल से भरे हुए, काले-काले हाथियों से व्याप्त, सरोवर ऐसे मालूम पड़ते हैं मानो स्वयं मेघ ही आकर उनकी सेवा कर रहे हैं ।।७७॥ वहाँ के तालाब साक्षात् कृष्ण के समान मालूम पड़ते हैं क्योंकि जिस प्रकार श्रीकृष्ण कमलाकर अर्थात् लक्ष्मी के (कर) हाथ सहित है, उसी प्रकार तालाब भी कमलाकर अर्थात् कमलों से भरे हुए हैं ॥७॥
जिस प्रकार श्रीकृष्ण सुमनसों (देवों) से मण्डित हैं, उसी प्रकार तालाब भी (सुमनस) अर्थात् नाना प्रकार के फूलों से पूर्ण हैं ॥७६|| जिस प्रकार श्रीकृष्ण हस्तियों के मद को चकनाचूर करनेवाले हैं अर्थात् इनके पास आते ही हस्ती शान्त हो जाते हैं ।।८०। और जिस देश में, वन में, पर्वत के मस्तकों पर, ग्राम में, देश में, पुर में, खोलारों में, नदियों के तटों पर, सदा मुनिगण देखने में आते हैं और धर्म के उपदेश में तत्पर, निर्मल, असंख्याते गणधर बड़े-बड़े संघों के साथ दृष्टिगोचर होते हैं उस देश में कहीं पर अनेक प्रकार के विमानों में बैठे हुए उत्तम देव, अपनी-अपनी अत्यन्त सुन्दरी देवांगनाओं के साथ केवली भगवान की पूजा करने के लिए आते हैं और कहीं पर मनोहर वाग में पुण्यात्मा पुरुषों द्वारा प्राप्त करने योग्य, अपनी मनोहर स्वर्गपुरी को छोड़ देवतागण अपनी देवांगनाओं के साथ क्रीड़ा करते हैं ।।८१-८३।।
वहाँ गोपालों की रमणियों द्वारा गाये हुए मनोहर गीतरूपी मन्त्रों से मन्त्रित तथा उनके गीतों में दत्तचित्त और भयरहित हिरणों का समूह निश्चल खड़ा रहता है, और भगाने पर भी नहीं भागता है॥४॥
___ और वहाँ जब तलाबों से प्यास से अत्यन्त व्याकुल हो अनेक हाथी पानी पीने आते हैं तब हथिनियों को देखकर उनके विरह से पीड़ित होकर अपना जीवन छोड़ देते हैं ॥८५॥ यह मगध देश नाना प्रकार के उत्तमोत्तम तीर्थंकरों सहित, नाना प्रकार के देव विद्याधरों से सेवित, और विशेष रीति से अनेक मुनिगणोंकर शोभित है इसका कहाँ तक वर्णन करें।॥६॥
इसी मगध देश में राजघरों से शोभित, अनेक प्रकार की शोभाओं से मण्डित, धन से पूर्ण तथा अनेक जनों से व्याप्त, राजगृह नामक एक नगर है। राजगृह नगर में न तो अज्ञानी मनुष्य
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