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श्रेणिक पुराणम्
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भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। धर्म-प्रेमी वे दोनों दंपती मुनिवर मणिमाली के पास गये। उन्हें भक्पूिपूर्वक नमस्कार कर राजा श्रेणिक ने विनय से पूछा
संसार-तारक स्वामिन् ! मेरे शुभोदय से आप राजमंदिर में आहारार्थ गये थे। किंतु आप बिना कारण आहार के बिना ही लौटे आये। यह क्या हुआ? मेरे मन में इस बात का बड़ा संशय बैठा है, कृपया मेरे इस संशय को शीघ्र मिटावें। राजा श्रेणिक के ऐसे वचन सुन मुनिराज ने कहा
राजन् ! रानी चेलना ने-'हे त्रिगुप्तिपालक मुनिराज आप आहारार्थ राजमंदिर में विराजें' इस रोति से हमारा आह्वान न किया था। मेरे कायगुप्ति थी नहीं इसलिए मैं वहाँ आहार के लिए न ठहरा वह क्यों नहीं थी? उसका कारण सुनाता हूँ। आप ध्यानपूर्वक सुनें
___ इसी पृथ्वीतल में अतिशय शुभ एक मणीवत नामक देश है। मणिवत साक्षात् समस्त देशों में मणि के समान है। मणि देश में (अधरता) धन, विद्या आदि की असहायता हो, यह बात नहीं है। वहाँ के निवासी धनी एवं विद्वान धन और विद्या से बराबर सहायता करनेवाले हैं। एकमात्र अधरता है तो स्त्रियों के ओंठों में ही है। इसलिए कोई किसी से किसी चीज की याचना भी नहीं करता। यदि याचना का व्यवहार है तो वर के लिए कन्या और कन्या के लिए वर का ही है। उस देश में किसी का विनाश भी नहीं किया जाता। यदि विनाश व्यवहार है तो व्याकरण में क्विप्प्रत्यय में ही है-क्विप्प्रत्यय का ही लोप किया जाता है। वहाँ के मनुष्य निरपराधी हैं इसलिए वहाँ कोई किसी का बंधन नहीं करता यदि बंधन व्यवहार है तो मनोहर शब्द करनेवाले पक्षियों में ही है-वे ही पिंजरे में बँधे रहते हैं। मणिवत देश में कोई आलसी भी नजर नहीं आता आलसीपना है तो वहाँ के मतवाले हाथियों में ही है-वे ही झमते-झूमते मंद गति से चलते हैं। कोई किसी को वहाँ पर मारने-सतानेवाला भी नहीं है। यदि मारता-सताता है तो यमराज ही है। वहां के निवासियों को भय किसी से नहीं है केवल कामी पुरुष अपनी प्राणवल्लभाओं के क्रोध से डरते हैं-कामियों को प्रति क्षण इस बात का डर बना रहता है, कहीं यह नाराज न हो जाय। उस देश में कोई चोर नहीं है यदि चोर का व्यवहार है तो पवन में है वहीं जहाँ कि सुगंधि चुरा ले आता है। वहाँ का कोई मनुष्य जाति-पतित नहीं है यदि पतन व्यवहार है तो वृक्षों के पत्तों में है वे ही पवन के जोर से जमीन पर गिरते हैं। वृक्षों के पत्ते छोड़कर उस देश में कोई चपल भी नहीं है। किंतु वहाँ के निवासी सब लोग गम्भीर और उदार हैं। वहाँ पर कोई मनुष्य जड़ नहीं है यदि जड़ता है तो स्त्रियों के नितम्बों में है। कृशता भी वहाँ पर स्त्रियों के कटिभाग में ही है-स्त्रियों की वहाँ कमर ही पतली है और कोई कृश नहीं। वहाँ के पत्थर ही नहीं बोलते-चालते हैं मनुष्य कोई मूंगा नहीं। उस देश में कोई किसी का दमन नहीं करता एकमात्र योगीश्वर ही इन्द्रियों का दमन करते हैं। मलिन भी वहाँ कोई नहीं रहता एकमात्र मलिनता वहाँ के तलावों में है। हाथी आकर वहां के तालाबों को गेंदला कर देते हैं। उस देश में निष्कोपता कमलों में ही है, सूर्यास्त होने पर वे ही मुंद जाते हैं। किंतु वहाँ निष्कोपता खजाना न हो, यह बात नहीं। लोग उस देश में दान आदि उत्तम कार्यों में ईर्ष्या-द्वष करते हैं। किंतु इनसे अतिरिक्त और किसी कार्य में उन्हें ई-टेष नहीं। वहाँ के लोग उत्तमोत्तम व्याख्यान सूनने के व्यसनी हैं-जआ आदि का कोई व्यसन नहीं। तथा उस देश में उत्तमोत्तम मुनियों के ध्यान-प्रभाव से वृक्ष सदा फले-फूले रहते हैं।
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