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________________ २२२ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् प्रजापालस्ततो भूत्या विवेश नगरं परम् । उत्तोरणं पताकाढ्यं कुर्वन्नादाकुलं जगत् ।।१६६।। जयवार्ता समाकर्ण्य प्रचंडश्चंडमानसः । जैन मेने प्रजापालं जिनवाक्यविनिर्णयं ॥१६७।। चंडप्रद्योतनो धीमान ससम्यक्त्वो गुणाकरः । व्याघुट्य निर्ययौ स्वस्य पुरं प्रति ससैन्यकः ॥१६॥ कदाचित् विहार करता-करता उस समय मैं भी कौशांबी में आ पहुँचा। मैंने जो वन किले के बिलकुल पास था। उसी में स्थित हो ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया। वहाँ ध्यान करते माली ने मुझे देखा । वह तत्काल राजा प्रजापाल के पास भागता-भागता पहुँचा और मेरे आगमन का सारा समाचार राजा से कह सुनाया। सुनते ही राजा प्रनापाल तत्काल मेरे दर्शन के लिए आये। मेरे पास आकर उन्होंने भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। राजा प्रजापाल के साथ और भी कई मनुष्य थे। उनमें से एक मनुष्य ने मुझसे यह निवेदन किया प्रभो! कृपया राजा प्रजापाल को आप शत्रुओं की ओर से अभयदान प्रदान करें। इन्हें वैरियों की ओर से कैसा भी भय न रहे। मनुष्य की राग-द्वेष परिपूर्ण बात सुनकर मैंने कुछ भी उत्तर न दिया, उस वन की रक्षिका एक देवी थी ज्योंही उसने यह समाचार सुना अपनी दिव्य वाणी से उसने शीघ्र ही उत्तर दिया राजन् प्रजापाल ! तुझे किसी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए, नियम से तेरी विजय होगी। बस, फिर क्या था? देवी तो उस समय अदश्य थी इसलिए ज्योंही राजा प्रजापाल ने ये वचन सुने अत्यधिक आनंद से उसका शरीर रोमांचित हो गया। वह यह समझ कि यह आशीर्वाद मुझे मुनिराज ने दिया है, बड़ी भक्ति से उसने मुझे नमस्कार किया। और बड़ी विभूति के साथ अपने राजमंदिर की ओर चला गया। राजमंदिर में जाकर विजय की खुशी में उसने तोरणादि लगाकर नगर में बड़ा भारी उत्सव किया। समस्त दिशा बधिर करनेवाले बाजे बजने लगे। एवं राजा प्रजापाल आनंद से रहने लगा। राजा चंडप्रद्योतन को भी इस बात का पता लगा। राजा प्रजापाल को पक्का जैनी समझ उसने तत्काल युद्ध का संकल्प छोड़ दिया। और सब सेना को साथ ले अपने नगर की ओर प्रस्थान कर दिया। नगर में जाकर उसने जैन धर्म धारण कर लिया। जिनराज के वाक्यों पर उसका पूरा-पूरा श्रद्धान हो गया और आनंद से रहने लगा ।।१६१-१६८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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