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________________ २२० श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् कि इन मुनिराज के कौन-सी गुप्ति नहीं है और वह क्यों नहीं है ? तथा कुछ समय ऐसा संकल्पविकल्प कर उन्होंने मुनिराज से पूछा प्रभो ! कृपया इस बात को खुलासा रीति से कहें। आपके कौन-सी गुप्ति न थी और क्यों नहीं थी? मेरे मन में अधिक संशय है। मुनिराज ने उत्तर दिया राजन् ! मेरे वचन गुप्ति न थी, वह क्यों न थी, उसका कारण सुनाता हूँ ? ध्यानपूर्वक सनो-इसी पृथ्वी-मंडल पर समस्त पृथ्वी का तिलकभृत एक भूमितिलक नाम का नगर है। नगर भमितिलक का अधिपति भली प्रकार प्रजा का रक्षक, अतिशय धर्मात्मा राजा प्रजापाल था। प्रजापाल की प्रिय भार्या धारिणी थी। रानी धारिणी अति मनोहरा, उत्तमोत्तम गुणों की आकर एवं कामदेव की जयपताका थी। शुभ भाग्योदय से रानी धारिणी से उत्पन्न एक कन्या थी। जो कन्या चंद्रवदना, मृगनयना, रतिरूपा समस्त उत्तमोत्तम गुणों की आकर एवं अपनी शरीर-कांति से अंधकार का नाश करनेवाली थी। और उसका नाम वसुकांता था। उसी समय कौशांबीपुरी में एक चंडप्रद्योतन नाम का प्रसिद्ध राजा राज्य करता था। चंडप्रद्योतन अतिशय तेजस्वी, वीर एवं विशाल सेना का स्वामी था। कदाचित् कुमारी वसुकांता ने यौवनावस्था में पदार्पण किया। राजा चंडप्रद्योतन को इसके युवतीपने का पता लग गया। कुमारी के गुणों पर मुग्ध हो राजा चंडप्रद्योतन ने शीघ्र ही राजा प्रजापाल से उस पुत्री के लिए प्रार्थना की। और उनके साथ बहुत-कुछ प्रेम दिखाया। किंतु राजा चंडप्रद्योतन जैन न था। इसलिए राजा प्रजापाल ने उसकी प्रार्थना न सुनी, और पुत्री के लिए साफ इनकार कर दी। राजा चंडप्रद्योतन ने यह बात सुनी। उसने शीघ्र ही सेना सजाकर भूमितिलक की ओर प्रस्थान कर दिया। कुछ दिन बाद मंजिल-दर-मंजिल करता-करता राजा चंडप्रद्योतन भूमितिलक पुर में आ पहुँचा। आते ही उसने अपनी सेना से समस्त नगर घेर लिया और लड़ाई के लिए तैयार हो गया। राजा प्रजापाल को इस बात का पता लगा उसने भी अपनी सेना सजवा ली। तत्काल वह चंडप्रद्योतन से लड़ने के लिए निकल पड़ा और दोनों दलों की सेना में भयंकर युद्ध होने लगा। मेघनाद मेघ शब्द से जैसे मयूर इधर-उधर नाचते फिरते हैं। मेघनाद (बिगुल) के शब्द सुनने से उस समय योद्धाओं की भी वही दशा हो गई। रोष में आकर वे भी इधर-उधर घूमने लगे और एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे। दोनों सेनाओं का घोर संग्राम साक्षात् महासागर की उपमा को धारण करता था। क्योंकि महासागर-जैसा पर्वतों से व्याप्त रहता है। संग्राम भी आहत हो पृथ्वी पर गिरे हुए हाथीरूपी पर्वतों से व्याप्त था। महासागर-जैसा तरंगयुक्त होता है, संग्राम भी चंचल अश्वरूपी तरंगयुक्त था। महासागर में जिस प्रकार महामत्स्य रहते हैं, संग्राम में भी पैनी तलवारों से कटे हुए मनुष्यों के मुखरूपी मत्स्य थे। महासागर-जैसा जल पूर्ण रहता है। संग्राम भी घावों से निकलते हुए रक्तरूपी जल से पूर्ण था। महासागर-जैसा मणि-रत्नों से व्याप्त रहता है, संग्राम भी मृत योद्धाओं के दाँतरूपी मणि-रत्नों से व्याप्त था। महासागर में जैसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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