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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
तच्छास्ता धर्मघोषोऽहं न्यायरूपेण भूतलं । पालयन्मंत्रिसामंतसेवितांह्निः प्रतापभृत् ।।१२५॥ लक्ष्मीमती शुभाकारा वल्लभा प्राणवल्लभा । ममाऽभूत्पूर्णचंद्रास्या कामवृक्षस्य मंजरी ।। १२६ ।। आवां प्रेमानुबद्धौ च गतं कालं न विद्धकः । अन्यदा सद्गुरुं प्राप्याकर्ण्य धर्ममहं नृप ॥ १२७ ॥ निर्विण्णो भव भोगेषु प्राव्राजं भवभीतधीः । विहरन्नगमं राजन् कौशांब्यां
भोजन कृते ॥ १२८ ॥
तत्रास्ति गुरुडाभिख्यो
राजमंत्र्यभवत्प्रिया ।
दत्ता गरुड़पूर्वां च तस्यचंद्रकला प्रभा ।। १२६॥
तयाहं वीक्ष्य सद्भक्त्या प्रतिगृह्यासनादिभिः । दीयते मे शुभाहारो देहाऽक्षप्रीणनक्षमः ।। १३० ॥ तंदुलं लेपकाले करात्सिक्तं पपात भूतले मम । राजन्नवलोकनहेतवे ॥१३१॥
तत्र दृष्टिगंता
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तदांगुष्टमहं तस्या अद्राक्षं मम मानसं । सस्मार पट्टदेव्याश्चांगुष्टं मोहवशान्नृप ॥१३२॥
ममाक्षप्रीणनक्षमः ।
तादृक्षोऽयं शुभोंगुष्टो इति स्मृते चकाराशु प्रत्यूहं नृपनायक ॥ १३३॥ तदा मे मानसी गुप्तिर्ना भूद्भपततः पुनः । विहरन्नत्र दैवेनाजगाम नृपमंदिरं ॥ १३४ ॥
महाराज श्रेणिक के ऐसे लालसायुक्त वचन सुनकर मुनिराज ने कहा- राजन् ! हमारे गुप्त नहीं है। यह क्यों नहीं है उसका कारण कहता हूँ, आप ध्यानपूर्वक सुनें
अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम नगरों से व्याप्त इसी जम्बूद्वीप में एक कलिंग नाम का देश है | कलिंग देश में अतिशय मनोहर बाजारों की श्रेणियों से व्याप्त एक दंतपुर नाम का सर्वोत्तम
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नगर है। दंतपुर का स्वामी जो कि नीतिपूर्वक प्रजा का पालक मंत्री एवं बड़े-बड़े सामंतों से वेष्टित, सूर्य के समान प्रतापी था। मैं राजा धर्मघोष था । मेरी पटरानी का नाम लक्ष्मीमती
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