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श्रीशभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
में पराग होती है, उसी प्रकार नक्षत्ररूपी पराग इसमें भी मौजूद हैं। जिस प्रकार कमल में कली रहती है, उसी प्रकार इस जम्बूद्वीप में मेरुपर्वतरूपी कली मौजूद है। जिस प्रकार कमल में मृणाल (सफेद तन्तु) रहता है, उसी प्रकार इस जम्बू द्वीप में भी शेषनागरूपी मृणाल मौजूद है। तथा जिस प्रकार कमल पर भ्रमर रहते हैं उसी प्रकार इस जम्ब द्वीप में भी अनेक मनुष्यरूपी भ्रमर मौजूद हैं। यह जम्बू द्वीप दूध के समान उत्तम निर्मल जल से भरे हुए तालाबों से जीवों को नाना प्रकार के आनन्द प्रदान करनेवाला है। यह जम्ब द्वीप राजा के समान जान पड़ता है क्योंकि जिस प्रकार राजा अनेक बड़े-बड़े राजाओं से सेवित होता है उसी प्रकार यह द्वीप भी अनेक प्रकार के महीधरों से अर्थात् पर्वतों से सेवित है। जिस प्रकार राजा कुलीन उत्तम वंश का होता है, उसी प्रकार यह जम्बू द्वीप भी कुलीन अर्थात् पृथ्वी में लीन है और जिस प्रकार राजा शुभ स्थितिवाला होता है उसी प्रकार यह भी अच्छी तरह स्थित है, तथा राजा जिस प्रकार रामालीन, अर्थात् स्त्रियों कर संयुक्त होता है, उसी प्रकार यह भी, रामालीन, अनेक वन-उपवनों से शोभित है। जिस प्रकार राजा महादेशी अर्थात् बड़े-बड़े देशों का स्वामी होता है उसी प्रकार यह भी महादेशी अर्थात् विस्तीर्ण है, यद्यपि यह द्वीप नदी 'नजड़संसेव्यः' अर्थात् उत्कट जड़ मनुष्यों से सेवित है तथापि 'नदीनजड़संसेव्यः' अर्थात् समुद्रों के जलों से वेष्टित है इसलिए यह उत्तम है। यद्यपि यह जम्ब द्वीप, 'निन्नगास्त्रीविराजितः' अर्थात् व्यभिचारिणो स्त्रियों कर सहित है तथापि 'अनिम्नगास्त्रीविराजितः' अर्थात् पतिव्रता स्त्रियों कर शोभित है इसलिए यह उत्तम है। तथा यद्यपि यह द्वीप 'द्विजराजाश्रितः' अर्थात् वरुणसंकर राजाओं के आधीन है तो भी उत्तम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों का निवास स्थान होने के कारण यह उत्तम ही है और पर्वतों से मनोहर, पुण्यवान उत्तम पुरुषों का निवास स्थान, यह जम्बू द्वीप अनेक प्रकार के उत्तम लताओं से, तथा बड़े-बड़े कुन्डों से तीन लोक में शोभित है। जिस जम्ब द्वीप की उत्तम गोलाई देखकर लज्जित व दुःखित हआ, यह मनोहर चन्द्रमा रात-दिन आकाश में घूमता फिरता है। तथा जिस प्रकार लोक-अलोक का मध्य भाग है उसी प्रकार यह जम्बू द्वीप भी समस्त द्वीपों में तथा तीन लोक के मध्य भाग में है। ऐसा बड़े-बड़े यतीश्वर कहते हैं ।।३९-४६।।
इस जम्बू द्वीप के मध्य में अनेक शोभाओं से शोभित, गले हुए सोने के समान देहवाला, दैदीप्यमान, अनेक कान्तियों से व्याप्त, सुवर्णमय मेरु पर्वत है। यह मेरु साक्षात् विष्णु के समान मालूम पड़ता है। क्योंकि जिस प्रकार विष्णु के चार भुजा हैं, उसी प्रकार इस मेरु पर्वत के भी चार गजदन्तरूपी चार भुजा हैं और जिस प्रकार विष्णु का नाम अच्युत है उसी प्रकार यह भी अच्युत अर्थात् नित्य है ॥४७-४८॥
जिस प्रकार विष्णु श्री समन्वित अर्थात् लक्ष्मी सहित हैं, उसी प्रकार यह मेरु पर्वत भी श्री समन्वित अर्थात् नाना प्रकार की शोभाओं से युक्त है। इस मेरु पर्वत पर सुभद्र, भद्रशाल तथा स्वर्ग के नन्दन वन के समान नन्दन वन, अनेक प्रकार के पुष्पों की सुगन्धि से सुगन्धित करनेवाले सौमनस्य वन हैं। यह मेरु अपांडु अर्थात् सफेद न होकर भी पांडुशिला का धारक सोलह अकृत्रिम चैत्यालयों से युक्त अपनी प्रसिद्धि से सबको व्याप्त करनेवाला अर्थात् अत्यन्त प्रसिद्ध और नाना प्रकार के देवों से युक्त है।।४६-५०॥
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