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________________ श्रेणिक पुराणम् अहो साधूपसर्गेणाशर्म नानाविधंभवेत् । किल्विषं परमं नित्यं श्वभ्रादिगतिदायकं ।। १६१॥ फलंति विपदोऽमुत्र साधु पीड़ा न संशयः । न विदंति मदालीढा अमुत्र च हिताहिते ॥ १६२ ॥ महाराज भी दूर से यह दृश्य देख रहे थे । ज्योंही उन्होंने कुत्तों को क्रोध रहित और प्रदक्षिणा करते हुए देखा क्रोध के कारण उनका शरीर पजल हो गया । वे सोचने लगे - यह साधु नहीं है, धूर्त्तवंचक कोई मंत्रवादी है । मेरे बलवान कुत्ते इस दुष्ट ने मंत्र से कीलित कर दिये हैं । अस्तु, मैं अभी इसके कर्म का मज़ा चखाता हूँ। तथा ऐसा विचार कर उन्होंने शीघ्र ही म्यान से तलवार निकाली और मुनि के मारणार्थ बड़े वेग से उनकी ओर झपटे । मुनि को मारने के लिए महाराज जा ही रहे थे कि अचानक ही उन्हें एक सर्प, जो कि अनेक जीवों का भक्षक एवं फण ऊँचा किये था, दीख पड़ा एवं उसे अनिष्ट का करनेवाला समझ, शीघ्र महाराज ने मार डाला। और अति क्रूर परिणामी हो पवित्र मुनि यशोधर के गले में डाल दिया । १८७ जैन सिद्धांत में फल प्राप्ति परिणामाधीन मानी है । जिस मनुष्य के जैसे परिणाम रहते हैं । उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है। महाराज श्रेणिक के उस समय अति रौद्र परिणाम थे । उन्हें तत्काल ही, जिस महातम प्रभा नरक में तेंतीस सागर की आयु, पाँच सौ धनुष का शरीर एवं विद्वानों के वचन के अगोचर घोर दुःख है, उस महातम प्रभा नाम के सप्तम नरक का आयु बन्ध बँध गया । Jain Education International यह बात ठीक भी है जो मनुष्य बिना विचारे दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं। विशेषकर साधु महात्माओं को उन्हें घोर से घोर दुःखों का सामना करना पड़ता है । महात्माओं को कष्ट देनेवाले मनुष्यों को इस बात का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, वे शीघ्र ही अनर्थ कर बैठते हैं। महाराज श्रेणिक ने मदोन्मत्त हो तुरन्त ऐसा काम कर दिया । इसलिए उन्हें इस प्रकार कष्टप्रद आयुबन्ध बँध गया ।। १५५-१६२ ।। यथायथा विकुर्वंति शुभं कर्माशुभं तथा । इह सर्वे जनास्तत्र भुंजंति च तथा तथा ।। १६३ ।। अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म च यैस्तकैः । आदत्त मृणवद्ज्ञेयं न कांता सुतबांधवैः ॥१६४॥ इति मत्वाऽशुभं कार्यं कार्यर्थं कार्यकोविदैः । वैरतः प्राणनाशेऽपि नाहितं हितमिच्छुभिः ॥ १६५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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