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________________ १७४ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् में रानी द्वारा तांबूल, इलायची आदि चीजों को खाकर और सब-के-सब रानी के पास आकर इस प्रकार उसे उपदेश देने लगे सुन्दरी ! देख तेरी प्रार्थना से हम सभी ने राजमंदिर में आकर भोजन किया है। अब तू शीघ्र ही बौद्ध धर्म को धारण कर। शीघ्र ही अपनी आत्मा बौद्ध धर्म की कृपा से पवित्र बना। अब तुझे जैन धर्म से सर्वथा सम्बन्ध छोड़ देना चाहिए। बौद्ध गुरुओं का ऐसा उपदेश सुन रानी ने विनय से उत्तर दिया-श्री गुरुओ! आप अपनेअपने स्थानों पर जाकर विराजें। मैं आपके यहाँ आऊँगी। और वहीं पर बौद्ध धर्मधारण करूँगी। इस विषय में आप ज़रा भी सन्देह न करें। रानी चेलना के ऐसे विनय वचन सुन वे सब गुरु अति प्रसन्न हुए। और अपने-अपने मठों को चल दिये। जिस समय वे दरवाजे पर आये। और ज्योंही उन्होंने अपने बाएं पैर के जूतों को न देखा वे एकदम घबरा गये। आपस में एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। एवं कुछ समय इधर-उधर अन्वेषण कर वे शीघ्र ही रानी के पास आये। और रानी से जूतों के बाबत कहा। एवं रानी को डाँटने भी लगे कि तुझे गुरुओं के साथ हँसो नहीं करनी चाहिए। बौद्ध गुरुओं का यह चरित्र देख रानी हँसने लगी। उसने शीघ्र ही उत्तर दिया-गुरुओ! आप तो इस बात की डींग मारते थे कि हम सर्वज्ञ हैं। अब आपका यह सर्वज्ञपना कहाँ गया? आप ही अपने ज्ञान से जानें कि आपके जूते कहाँ हैं। रानी के ऐसे वचन सुन बौद्ध बड़े छके। उनके चेहरों से प्रसन्नता तो कोसों दूर किनारा कर गई। अब रानी के सामने उनसे दूसरा तो कोई बहाना न बन सका। किंतु लाचारी से यही जवाब देना पड़ा-सुन्दरी! हम लोगों में ऐसा ज्ञान नहीं कि हम इस बात को जान लें कि हमारे जते कहाँ हैं ? कृपा कर आप ही हमारे जते बता दीजिए। बौद्ध गुरुओं के ऐसे वचन सुन रानी चेलना का शरीर मारे क्रोध के भभक उठा कुछ समय पहले जो वह अपने पवित्र धर्म की निंदा सुन चुकी थी। उस निंदा ने उसे और भी क्रोधित बना दिया। बौद्ध गुरुओं को बिना जवाब दिये उससे नहीं रहा गया, यह कहने लगी॥६१-७॥ दिगंबरगति रम्यां कथं भो वंचनोद्यताः । अलीकभाषिणो यूयं सर्वमुग्धप्रतारकाः ।। ७६ ।। न जानीमो गति राज्ञि तेषां ज्ञानेन निश्चितं । उपानहो द्रुतं देहि यतोऽटामः स्वमंदिरम् ।। ८० ॥ भावत्कं वस्तु चास्त्येव भवत्पार्वेषु सौगताः । अस्माकं सन्निधौ नास्ति भवत्सु खलु विद्यते ॥ ८१॥ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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