SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक पुराणम् आकर्णेति मृगाक्षी साऽभाणीद्भो बौद्धनायकाः । मत्वा बोधेन गृहणंतु तां भवन्तश्च ज्ञानिनः ॥ ७७ ॥ नास्ति राज्ञीदृशं ज्ञानमस्मत्सु च तदा जगौ । यदीदृशं न विज्ञानं जानीध्वे मुग्धमानसाः ॥ ७८ ॥ प्रिये ! आज तुम धन्य हो । गुरुओं के उपदेश से तुमने बौद्ध धर्म धारण करने की प्रतिज्ञा कर ली । शुभे ! ध्यान रखो बौद्ध धर्म से बढ़कर दुनिया में कोई भी धर्म हितकारी नहीं । आज तेरा जन्म सफल हुआ। अब तुम्हें जिस बात की अभिलाषा हो, शीघ्र कहो। मैं अभी उसे पूर्ण करने के लिए तैयार हूँ। तथा इस प्रकार कहते-कहते महाराज ने रानी चेलना को उत्तमोत्तम पदार्थ बनाने की शीघ्र ही आज्ञा दे दी । १७३ महाराज की आज्ञा पाते ही रानी चेलना ने शीघ्र ही भोजन बनाना प्रारम्भ कर दिया । लड्डू, खाजे आदि उत्तमोत्तम पदार्थ तत्काल तैयार हो गये। जिस समय महाराज ने देखा कि भोजन तैयार है, शीघ्र ही उन्होंने बड़े विनय से गुरुओं को बुलावा भेज दिया। और राजमंदिर में उनके बैठने के स्थान का शीघ्र प्रबन्ध भी करा दिया । गुरुण इस बात की चिंता में बैठा ही था कि निमंत्रण आवे और कब हम राजमंदिर में भोजनार्थं चलें । ज्योंही निमंत्रण- समाचार पहुँचा । शीघ्र ही सभी ने अपने वस्त्र पहने । और राजमंदिर की ओर चल दिये । राजमंदिर में प्रवेश करते समय रानी चेलना ने उन्हें देखा तो उनका बड़ा भारी सम्मान किया। उनके गुणों की प्रशंसा की । एवं जब वे बौद्ध गुरु अपने-अपने स्थानों पर बैठ गये । रानी चेलना ने नम्रता से उनका पाद प्रक्षालन किया । तथा उनके सामने उत्तमोत्तम सुवर्णमय थाल रखकर भाँति-भाँति के लड्डू, खीर, श्रीखंड, राजाओं के खाने योग्य भात, मूंग के लड्डू इत्यादि स्वादिष्ट पदार्थों को परोस दिया। और भोजन के लिए प्रार्थना भी कर दी । रानी की प्रार्थना सुनते ही गुरुओं ने भोजन करना प्रारम्भ कर दिया। कभी तो वे खीर खाने लगे । और कभी उन्होंने लड्डुओं पर हाथ जमाया। भोजन को उत्तम एवं स्वादिष्ट समझ वे मन-ही-मन अति प्रसन्न होने लगे । और बार-बार रानी की प्रशंसा करने लगे । । जिस समय रानी ने बौद्ध गुरुओं को भोजन में अति मग्न देखा शीघ्र ही उसने अपनी प्रिय दासी बुलाई। और यह आज्ञा दी । तू अभी राजमंदिर के दरवाजे पर जा, और गुरुओं के बाएँ पैरों के जूते लाकर शीघ्र उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर मुझे दे रानी की आज्ञा पाते ही दूती चल दी । उसने वहाँ से जूता लाकर और उनके महीन टुकड़े कर शीघ्र ही रानी को दे दिये । तथा रानी ने उन्हें शीघ्र ही किसी निकृष्ट छाछ में डाल दिया एवं उनमें खूब मसाला मिलाकर शीघ्र थोड़ा-थोड़ा कर गुरुओं के सामने परोस दिया । Jain Education International जिस समय मधुर भोजनों से उनकी तबीयत अकुला गई तब उन्होंने यह समझा कि यह कोई अद्भुत चटपटी चीज है शीघ्र ही उन छाछ मिश्रित टुकड़ों को खा गये । एवं भोजन के अन्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy