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________________ श्रेणिक पुराणम् मुनियों की सेवा-शुश्रूषा करोगी तो तुम्हें भी इन्हीं के समान परभव में दरिद्र एवं भिक्षुक होना पड़ेगा। इसलिए अनेक प्रकार के भोग भोगनेवाले, वस्त्र आदि पदार्थों से सुखी, बौद्ध साधुओं की ही तू भक्तिपूर्वक सेवा कर। इन्हें ही अपना हितैषी मान जिससे परभव में तुझे अनेक प्रकार के भोग भोगने में आवें। पतिव्रते ! अब तुझे चाहिए कि तू शीघ्र ही अपने चित्त से जैन मुनियों की भक्ति निकाल दे। बुद्धिमान लोग कल्याण-मार्गगामी होते हैं। सच्चा कल्याणकारी मार्ग भगवान बुद्ध का ही है। बौद्ध गुरुओं का ऐसा उपदेश सुन रानी चेलना से न रहा गया। बड़ी गंभीरता एवं सभ्यता से उसने शीघ्र ही पूछा बौद्ध गुरुओ! आपका उपदेश मैंने सुना किंतु मुझे इस बात का संदेह रह गया, आप यह बात कैसे जानते हैं कि दिगम्बर मुनियों की सेवा से परभव में क्लेश भोगने पड़ते हैं, दीन-दरिद्री होना पड़ता है। और बौद्ध गुरुओं की सेवा से यह एक भी बात नहीं होती। बौद्ध गुरु-सेवा से मनुष्य परभव में सुखी रहते हैं इत्यादि । कृपाकर मुझे शीघ्र कहें--- रानी के इन वचनों को सुन बौद्ध गुरुओं ने कहा-चेलने! तुम्हें इस बात में संदेह नहीं करना चाहिए। हम सर्वज्ञ हैं। परभव की बात बताना हमारे सामने कोई बड़ी बात नहीं। हम विश्व-भर की बातें बता सकते हैं। बौद्ध गुरुओं के ऐसे वचन सुन रानी चेलना ने कहा बौद्ध गुरुओ! यदि आप अखंड ज्ञान के धारक सर्वज्ञ हैं तो मैं कल आपको भक्तिपूर्वक भोजन कराकर आपके मत को ग्रहण करूँगी। आप इस विषय में ज़रा भी संदेह न करें रानी के मुख से ये वचन सुन बौद्ध गुरुओं को परम संतोष हो गया। हर्षित चित्त हो, वे शीघ्र ही महाराज के पास आये और सारा समाचार महाराज को कह सुनाया। बौद्ध गुरुओं के मुख से रानी का इस प्रकार वचन सुन महाराज भी अति प्रसन्न हुए। उन्हें भी पूरा विश्वास हो गया कि अब रानी जरूर बौद्ध बन जायेगी। तथा रानी की भाँति-भांति से प्रशंसा करते हुए महाराज शीघ्र ही उसके पास गये और उसके मुखपर भी इस प्रकार प्रशंसा करने लगे॥४६-६०॥ त्वं धन्यासि महाराज्ञि सफलं तेऽद्यजन्म च । सफलं जीवितं तेऽद्य सद्धर्मग्रहात्प्रिये ॥ ६१ ॥ वित्तघोटकदेशादौ वाछां तेयत्र वर्त्तते । वांछयस्वाद्यचित्तस्थं तद्ददामि सुधर्मतः ॥ ६२ ॥ ततोऽन्नपान पक्वान्नमोदकं व्यंजनान्वितम् । राश्या निष्पाद्य ते सर्वे आहूता निजमंदिरे ॥ ६३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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