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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
ततः प्रमुदिताः सर्वेऽभूवन् राज्ञी प्रबोधनात् । समैत्य नृपतिः शंसां चक्रे तस्याः प्रमोदतः ।। ६० ।।
राजन् ! हमने सुना है कि रानी चेलना जैन धर्म की परम भक्त है। वह बौद्ध धर्म को एक घृणित धर्म मानती है। बौद्ध धर्म को धरातल में पहुँचाने के लिए वह पूरा-पूरा प्रयत्न भी कर रही है। यदि यह बात सत्य है तो आप शीघ्र ही इसके प्रतीकार्थ कोई उपाय सोचें। नहीं तो बड़े भारी अनर्थ की संभावना है।
बौद्ध गुरुओं के ऐसे वचन सुन महाराज ने और तो कुछ भी जवाब न दिया। केवल यही कहा-पूज्यवरो! रानी को मैं बहुत-कुछ समझा चुका। उसके ध्यान में एक भी बात नहीं आती।
कृपाकर आप ही उसके पास जायें और उसे समझावें। यदि आप इस बात में विलंब करेंगे तो याद रखिये बौद्ध धर्म की अब खैर नहीं। अवश्य रानी बौद्ध धर्म को जड़ से उखाड़ने के लिए पूरा-पूरा प्रयत्न कर रही है।
महाराज के ऐसे वचनों ने बौद्ध गुरुओं के चित्त पर कुछ शांति का प्रभाव डाल दिया। उन्हें इस बात से सर्वथा दिल में तसल्ली हो गई कि चलो राजा तो बौद्ध धर्म का भक्त है तथा उन्होंने शीघ्र ही राजा से कहा
राजन् ! आप खेद न करें। हम अभी रानी को जाकर समझाते हैं। हमारे लिए यह बात कौन कठिन है? क्योंकि हम पिटकत्रय आदि अनेक ग्रन्थों के भली प्रकार ज्ञाता हैं। हमारी जिह्वा सदा अनेक शास्त्रों का रंगस्थल बनी रहती है। और भी अनेक विद्याओं के हम पारगामी हैं। ऐसा कहकर वे शीघ्र ही रानी चेलना के पास आये। और इस प्रकार उपदेश देने लगे
चेलने ! हमने सुना है कि तू जैन धर्म को परम पवित्र धर्म समझती है। और बौद्ध धर्म से घृणा करती है। सो यह तेरा विचार सर्वथा अयोग्य है। तू यह निश्चय समझ, संसार में जीवों को हित करनेवाला है तो बौद्ध धर्म ही है। जैन धर्म से कदापि जीवोंका कल्याण नहीं हो सकता। देख! ये जितने दिगंबर मत के अनुयायी साधु हैं सो पशु के समान हैं क्योंकि पशु जिस प्रकार नग्न रहता है उसी प्रकार ये भी नग्न फिरते रहते हैं। आहार के न मिलने से पशु जिस प्रकार उपवास करते हैं उसीप्रकार ये भी आहार के अभावसे उपवास करते हैं। तथा पशु के समान ये अविचारित और ज्ञानविज्ञान रहित भी हैं । और हे रानी ! दिगंबर साधु-जैसे इस भव में दीन-दरिद्री रहते हैं परजन्म में भी इनकी यही दशा रहेगी। परजन्म में भी इन्हें किसी प्रकार के वस्त्र-भोजनों की प्राप्ति नहीं होगी। वर्तमान में जो दिगंबर क्षधा-तषा आदि से व्याकल दीखते हैं। परजन्म में भी नियम से ये ऐसे ही व्याकुल रहेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं। तथा हे रानी ! क्षेत्र में बीज बोने पर जैसा तदनुरूप फल उत्पन्न होता है। उसी प्रकार समस्त संसारी जीवों की दशा है । वे जैसा कर्म करते हैं नियम से उन्हें भी वैसा ही फल मिलता है। याद रखो यदि तुम इन भिक्षुक दिगम्बर दरिद्र
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